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लब्धप्रणाशम्] | [२१९ |
अधिकार कर लिया है।" यह सुनकर मगर और भी चिन्तित हो गया। उसके चारों ओर विपत्तियों के बादल उमड़ रहे थे। उन्हें दूर करने का उपाय पूछने के लिये वह बन्दर से बोला—"मित्र! मुझे बता कि साम-दाम-भेद आदि में से किस उपाय से अपने घर पर फिर अधिकार करूँ"
बन्दर—"कृतघ्न! मैं तुझे कोई उपाय नहीं बतलाऊँगा। अब मुझे मित्र भी मत कह। तेरा विनाश काल आ गया है। सज्जनों के वचन पर जो नहीं चलता, उसका विनाश अवश्य होता है, जैसे घंटोष्ट्र का हुआ था।"
मगर ने पूछा—"कैसे?"
तब बन्दर ने यह कहानी सुनाई—