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१०.

राजनीतिज्ञ गीदड़

उत्तमं प्रणिपातेन शूरं भेदेन योजयेत्।
नीचमल्पप्रदानेन समशक्ति पराक्रमैः।।


उत्कृष्ट शत्रु को विनय से, बहादुर को भेद
से, नीच को दान द्वारा और समशक्ति को

पराक्रम से वश में लाना चाहिये।

एक जङ्गल में महाचतुर नाम का गीदड़ रहता था। उसकी दृष्टि में एक दिन अपनी मौत आप मरा हुआ हाथी पड़ गया। गीदड़ ने उसकी खाल में दाँत गड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं से भी उसकी खाल उधेड़ने में उसे सफलता नहीं मिली। उसी समय वहाँ एक शेर आया। शेर को आता देखकर वह साष्टांग प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़कर बोला—"स्वामी! मैं आपका दास हूँ। आपके लिये ही इस मृत हाथी की रखवाली कर रहा हूँ। आप अब इसका यथेष्ट भोजन कीजिये।"

शेर ने कहा—"गीदड़! मैं किसी और के हाथों मरे जीव का भोजन नहीं करता। भूखे रह कर भी मैं अपने इस धर्म का पालन

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