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२२४] [पञ्चतन्त्र

करता हूँ। अतः तू ही इसका आस्वादन कर। मैंने तुझे भेंट में दे दिया।"

शेर के जाने के बाद वहाँ एक बाघ आया। गीदड़ ने सोचा : 'एक मुसीबत को तो हाथ जोड़ कर टाला था, इसे कैसे टालूँ? इसके साथ भेद-नीति का ही प्रयोग करना चाहिए। जहाँ साम-दाम की नीति न चले वहाँ भेद-नीति ही अपना काम करती है। भेद-नीति ही ऐसी प्रबल है कि मोतियों को भी माला में बाँध देती है।' यह सोचकर वह बाघ के सामने ऊँची गर्दन करके गया और बोला—

"मामा! इस हाथी पर दाँत न गड़ाना। इसे शेर ने मारा है। वह अभी नदी पर स्नान करने गया है और मुझे रखवाली के लिये छोड़ गया है। वह यह भी कह गया है कि यदि कोई बाघ आए तो उसे बता दूँ, जिससे वह सारा जङ्गल बाघों से खाली कर दे।"

गीदड़ की बात सुनकर बाघ ने कहा—"मित्र! मेरी जीवन रक्षा कर, प्राणों की भिक्षा दे। शेर से मेरे आने की चर्चा न करना।" यह कह कर वह बाघ वहाँ से भाग गया।

बाघ के जाने के बाद वहाँ एक चीता आया। गीदड़ ने सोचा—'चीते के दाँत तीखे होते हैं, इससे हाथी की खाल उधड़वा लेता हूँ।' यह सोच वह उसके पास जाकर बोला—"भगिनीसुत! क्या बात है, बहुत दिनों में दिखाई दिये हो। कुछ भूख से सताए मालूम होते हो। आओ, मेरा आतिथ्य स्वीकार करो। देखो,