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लब्धप्रणाशम्] [२२५

यह हाथी शेर ने मारा है, मैं इसका रखवाला हूँ। जब तक शेर नहीं आता, तब तक इसका माँस खाकर जल्दी से भाग जाओ। मैं उसके आने की ख़बर दूर से ही दे दूँगा।"

गीदड़ थोड़ी दूर पर खड़ा हो गया और चीता हाथी की खाल उधेड़ने में लग गया। जैसे ही चीते ने एक दो जगहों से खाल उधेड़ी, वैसे ही गीदड़ चिल्ला पड़ा : "शेर आ रहा है, भाग जा।" चीता यह सुनकर भाग खड़ा हुआ।

उसके जाने के बाद गीदड़ ने उधड़ी जगहों से माँस खाना शुरू कर दिया। लेकिन अभी एक दो ग्रास ही खाए थे कि एक गीदड़ आ गया। गीदड़ तो उसका समशक्ति ही था। इसलिये वह उस पर टूट पड़ा और उसे दूर तक भगा आया। इसके बाद बहुत दिनों तक वह उस हाथी का मांस खाता रहा।

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यह कहानी सुनाकर बन्दर ने कहा—"तभी तुझे भी कहता हूँ कि स्वजातीय से युद्ध करके अभी निपट ले, नहीं तो उसकी जड़ जम जाएगी। वही तुझे नष्ट कर देगा। स्वजातियों का यही दोष है कि वही विरोध करते हैं, जैसे कुत्तों ने किया था।"

मगर ने कहा—"कैसे?"

बन्दर ने तब कुत्ते की यह कहानी सुनाई—