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तुम्हारे मस्तक से छूटकर मेरे मस्तक पर क्यों लग गया?"

अजनबी मनुष्य ने उत्तर दिया—"मेरे मस्तक पर भी यह इसी तरह अचानक लग गया था। अब यह तुम्हारे मस्तक से तभी उतरेगा जब कोई व्यक्ति धन के लोभ में घूमता हुआ यहाँ तक पहुँचेगा और तुम से बात करेगा।"

युवक ने पूछा—"यह कब होगा?"

अजनबी—"अब कौन राजा राज्य कर रहा है?"

युवक—"वीणा वत्सराज।"

अजनबी—"मुझे काल का ज्ञान नहीं। मैं राजा राम के राज्य में दरिद्र हुआ था, और सिद्धि का दीपक लेकर यहाँ तक पहुँचा था। मैंने भी एक और मनुष्य से यही प्रश्न किये थे, जो तुम ने मुझ से किये हैं।"

युवक—"किन्तु, इतने समय में तुम्हें भोजन व जल कैसे मिलता रहा?"

अजनबी—"यह चक्र धन के अति लोभी पुरुषों के लिये बना है। इस चक्र के मस्तक पर लगने के बाद मनुष्य को भूख, प्यास, नींद, जरा, मरण आदि नहीं सताते। केवल चक्र घूमने का कष्ट ही सताता रहता है। वह व्यक्ति अनन्त काल तक कष्ट भोगता है।"

यह कहकर वह चला गया। और वह अति लोभी ब्राह्मण युवक कष्ट भोगने के लिए वहीं रह गया। थोड़ी देर बाद खून से लथपथ हुआ वह इधर-उधर घूमते-घूमते उस मित्र के पास पहुँचा जिसे स्वर्ण की सिद्धि हुई थी, और जो अब स्वर्ण-कण बटोर रहा