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[पञ्चतन्त्र
 

था। उससे चक्रधर ब्राह्मण युवक ने सब वृत्तान्त कह सुनाया। स्वर्ण-सिद्धि युवक ने चक्रधर युवक को कहा कि—"मैंने तुझे आगे जाने से रोका था। तू ने तब मेरा कहना नहीं माना। बात यह है कि तुझे ब्राह्मण होने के कारण विद्या तो मिल गई, कुलीनता भी मिली; किन्तु भले बुरे को परखने वाली बुद्धि नहीं मिली। विद्या की अपेक्षा बुद्धि का स्थान ऊँचा है। विद्या होते हुए जिनके पास बुद्धि नहीं होती, वे सिंहकारकों की तरह नष्ट हो जाते हैं।"

चक्रधर ने पूछा—"किन सिंहकारकों की तरह?"

स्वर्णसिद्धि ने तब अगली कथा सुनाई—