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मित्रभेद]
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दमनक—"किस लिये भगवन्!"

पिंगलक—"इसलिये कि इस वन में यह कोई दूसरा बलशाली जानवर आ गया है; उसी का यह भयंकर घोर गर्जन है। अपनी आवाज़ की तरह वह स्वयं भी इतना ही भयंकर होगा। उसका पराक्रम भी इतना ही भयानक होगा।"

दमनक—"स्वामी! ऊँचे शब्द मात्र से भय करना युक्तियुक्त नहीं है। ऊँचे शब्द तो अनेक प्रकार के होते हैं। भेरी, मृदंग, पटह, शंख, काहल आदि अनेक वाद्य हैं जिनकी आवाज़ बहुत ऊँची होती है। उनसे कौन डरता है? यह जंगल आपके पूर्वजों के समय का है। वह यहीं राज्य करते रहे हैं। उसे इस तरह छोड़कर जाना ठीक नहीं। ढोल भी कितनी जोर से बजता है। गोमायु को उसके अन्दर जाकर ही पता लगा कि वह अन्दर से खाली था।"

पिंगलक ने कहा—"गोमायु की कहानी कैसे है?"

दमनक ने तब कहा—"ध्यान देकर सुनिए—