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६.

संगीतविशारद गधा

साधु मातुल! गीतेन भया प्रोक्तोऽपि न स्थितः।
अपूर्वोऽयं मणिर्बद्धः संप्राप्तं गीतलक्षणम्॥


मित्र की सलाह मानो

एक गांव में उद्धत नाम का गधा रहता था। दिन में धोबी का भार ढोने के बाद रात को वह स्वेच्छा से खेतों में घूमा करता था। सुबह होने पर वह स्वयं धोबी के पास आ जाता था।

रात को खेतों में घूमते-घूमते उसकी जान-पहचान एक गीदड़ से हो गई। गीदड़ मैत्री करने में बड़े चतुर होते हैं। गधे के साथ गीदड़ भी खेतों में जाने लगा। खेत की बाड़ को तोड़ कर गधा अन्दर चला जाता था और वहाँ गीदड़ के साथ मिलकर कोमल-कोमल ककड़ियाँ खाकर सुबह अपने घर आ जाता था।

एक दिन गधा उमंग में आ गया। चांदनी रात थी। दूर तक खेत लहलहा रहे थे। गधे ने कहा—"मित्र! आज कितनी निर्मल चांदनी खिली है। जी चाहता है, आज खूब गीत गाऊँ। मुझे

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