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सब राग-रागनियाँ आती हैं। तुझे जो गीत पसन्द हो, वही गाऊँगा। भला, कौनसा गाऊँ, तू ही बता।"

गीदड़ ने कहा—'मामा! इन बातों को रहने दो। क्यों अनर्थ बखेरते हो? अपनी मुसीबत आप बुलाने से क्या लाभ? शायद, तुम भूल गये कि हम चोरी से खेत में आये हैं। चोर को तो खांसना भी मना है, और तुम ऊँचे स्वर से राग-रागनी गाने की सोच रहे हो। और शायद तुम यह भी भूल गए कि तुम्हारा स्वर मधुर नहीं है। तुम्हारी शंखध्वनि दूर-दूर तक जायेगी। इन खेतों के बाहर रखवाले सो रहे हैं। वे जाग गये तो तुम्हारी हड्डियाँ तोड़ देंगे। कल्याण चाहते हो तो इन उमंगों को भूल जाओ; आनन्द पूर्वक अमृत जैसी मीठी ककड़ियों से पेट भरो। संगीत का व्यसन तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है।"

गीदड़ की बात सुनकर गधे ने उत्तर दिया। "मित्र! तुम वनचर हो, जंगलों में रहते हो, इसीलिये संगीत सुधा का रसास्वाद तुमने नहीं किया है। तभी तुम ऐसी बातें कह रहे हो।"

गीदड़ ने कहा—"मामा! तुम्हारी बात ही ठीक सही, लेकिन तुम भी संगीत तो नहीं जानते, केवल गले से ढीचू-ढीचू करना ही जानते हो।"

गधे को गीदड़ की बात पर क्रोध तो बहुत आया, किन्तु क्रोध को पीते हुए गधा बोला—"गीदड़! यदि मुझे संगीत विद्या का ज्ञान नहीं तो किस को होगा? मैं तीनों प्रामों, सातों स्वरों, २१ मुर्छनाओं, ४९ तालों, तीनों लयों, और तीस मात्राओं के भेदों