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२५८] [पञ्चतन्त्र

को जानता हूँ। राग में तीन यति विराम होते हैं, नौ रस होते है। ३६ राग-रागिनियों का मैं पंडित हूँ। ४० तरह के संचारी व्यभिचारी भावों को भी मैं जानता हूँ। तब भी तू मुझे रागी नहीं मानता। कारण, कि तू स्वयं राग-विद्या से अनभिज्ञ है।"

गीदड़ कहा—"मामा! यदि यही बात है तो मैं तुझे नहीं रोकूँगा। मैं खेत के दरवाज़े पर खड़ा चौकीदारी करता हूँ, तू जैसा जी चाहे गाना गा!"

गीदड़ के जाने के बाद गधे ने अपना आलाप शुरू कर दिया। उसे सुनकर खेत के रखवाले दाँत पीसते हुए भागे आये। वहाँ आकर उन्होंने गधे को लाठियों से मार-मार कर ज़मीन पर गिरा दिया। उन्होंने उसके गले में सांकली भी बांध दी। गधा भी थोड़ी देर कष्ट से तड़पने के बाद उठ बैठा। गधे का स्वभाव है कि वह बहुत जल्दी कष्ट की बात भूल जाता है। लाठियों की मार की याद मूहुर्त भर ही उसे सताती है।

गधे ने थोड़ी देर में सांकली तुड़ाली और भागना शुरू कर दिया। गीदड़ भी उस समय दूर खड़ा सब तमाशा देख रहा था। मुस्कराते हुए वह गधे से बोला—"क्यों मामा! मेरे मना करते-करते भी तुमने आलापना शुरू कर दिया। इसीलिये तुम्हें यह दंड मिला। मित्रों की सलाह का ऐसा तिरस्कार करना उचित नहीं है।"

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चक्रधर ने इस कहानी को सुनने के बाद स्वर्णसिद्धि से