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गीले पैरों से ज़मीन नहीं छू सकता, इसलिये वह उसका पीछा नहीं कर सकेगा।

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ब्राह्मण यदि राक्षस से प्रश्न न करता तो उसे यह भेद कभी मालूम न होता। अतः मनुष्य को प्रश्न करने से कभी चूकना नहीं चाहिये। प्रश्न करने की आदत अनेक बार उसकी जीवन-रक्षा कर देती है।

स्वर्णसिद्धि ने कहानी सुनकर कहा—"यह तो ठीक ही है। दैव अनुकूल हो तो सब काम स्वयं सिद्ध हो जाते हैं। फिर भी पुरुष को श्रेष्ठ मित्रों के वचनों का पालन करना ही चाहिये। स्वेच्छाचार बुरा है। मित्रों की सलाह से मिल-जुलकर और एक दूसरे का भला चाहते हुए ही सब काम करने चाहियें। जो लोग एक दूसरे का भला नहीं चाहते और स्वेच्छया सब काम करते हैं, उनकी दुर्गति वैसी ही होती है जैसी स्वेच्छाचारी भारण्ड पक्षी की हुई थी।

चक्रधर ने पूछा—"वह कैसे?"

स्वर्णसिद्धि ने तब यह कथा सुनाई—