पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

 

१३.

मार्ग का साथी

'. . .नैकाकिना गन्तव्यम्'

‘अकेले यात्रा मत करो’

एक दिन ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपने गाँव से प्रस्थान करने लगा। उसकी माता ने कहा―"पुत्र! कोई न कोई साथी रास्ते के लिये खोज लो। अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिये।"

ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया—"डरो मत माँ! इस मार्ग में कोई उपद्रव नहीं है। मुझे जल्दी जाना है, इतने में साथी नहीं मिलेगा। मेरे पास साथी खोजने का समय नहीं है।" माँ ने कुछ और उपाय न देख पड़ोस से एक 'कर्कट' ले लिया और अपने पुत्र ब्रह्मदत्त को कहा कि "यदि तुझे जाना ही है तो इस कर्कट को भी साथ लेता जा। यह तुझे बहुत सहायता देगा।"

ब्रह्मदत्त ने माता का कहना मान कर्कट को ही साथी बना लिया; उसे कपूर की डिबिया में रखकर यात्रा के लिये चल दिया।

(२८१)