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मित्रभेद]
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प्रभुता बनाने का यही एक मार्ग है। मैत्री भेद किये बिना काम नहीं चलेगा।"

करटक—"मेरी भी यही राय है। तू उनमें भेद कराने का यत्न कर। ईश्वर करे तुझे सफलता मिले।"

वहाँ से चलकर दमनक पिंगलक के पास गया। उस समय पिंगलक के पास संजीवक नहीं बैठा था। पिंगलक ने दमनक को बैठने का इशारा करते हुए कहा—"कहो दमनक! बहुत दिन बाद दर्शन दिये।"

दमनक—"स्वामी! आप को अब हम से कुछ प्रयोजन ही नहीं रहा तो आने का क्या लाभ? फिर भी आप के हित की बात कहने को आप के पास आ जाता हूँ। हित की बात बिना पूछे भी कह देनी चाहिये।"

पिंगलक—"जो कहना हो, निर्भय होकर कहो। मैं अभय वचन देता हूँ।"

दमनक—"स्वामी! संजीवक आप का मित्र नहीं, बैरी है। एक दिन उसने मुझे एकान्त में कहा था कि, "पिंगलक का बल मैंने देख लिया; उसमें विशेष सार नहीं है, उसको मारकर मैं तुझे मन्त्री बनाकर सब पशुओं पर राज्य करूँगा।"

दमनक के मुख से इन वज्र की तरह कठोर शब्दों को सुनकर पिङ्गलक ऐसा चुप रह गया मानो मूर्छना आ गई हो। दमनक ने जब पिङ्गलक की यह अवस्था देखी तो सोचा—'पिङ्गलक का