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मित्रभेद]
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वैरी बना दिया है कि वे भविष्य में कभी एक दूसरे का विश्वास नहीं करेंगे।"

करटक—"यह तूने अच्छा नहीं किया मित्र! दो स्नेही हृदयों में द्वेष का बीज बोना बुरा काम है।"

दमनक—"करटक! तू नीति की बातें नहीं जानता, तभी ऐसा कहता है। संजीवक ने हमारे मन्त्री पद को हथिया लिया था। वह हमारा शत्रु था। शत्रु को परास्त करने में धर्म-अधर्म नहीं देखा जाता। आत्मरक्षा सब से बड़ा धर्म है। स्वार्थसाधन ही सब से महान् कार्य है। स्वार्थ-साधन करते हुए कपट-नीति से ही काम लेना चाहिये—जैसे चतुरक ने लिया था।"

करटक ने पूछा—"कैसे?"

दमनक ने तब चतुरक गीदड़ और शेर की यह कहानी सुनाई—