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[पञ्चतन्त्र
 

दोष है, तुम्हारा नहीं। तुम इसकी चिन्ता न करो।"

थोड़ी देर बाद उसने महाजन से कहा—"मित्र! मैं नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा आयेगा।"

महाजन बनिये की सज्जनता से बहुत प्रभावित था, इसलिए उसने तत्काल अपने पुत्र को उसके साथ नदी-स्नान के लिए भेज दिया।

बनिये ने महाजन के पुत्र को वहाँ से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बन्द कर दिया। गुफा के द्वार पर बड़ी सी शिला रख दी, जिससे वह बचकर भाग न पाये। उसे वहाँ बंद करके जब वह महाजन के घर आया तो महाजन ने पूछा—"मेरा लड़का भी तो तेरे साथ स्नान के लिए गया था, वह कहाँ है?"

बनिये ने कहा—"उसे चील उठा कर ले गई है।"

महाजन—"यह कैसे हो सकता है? कभी चील भी इतने बड़े बच्चे को उठा कर ले जा सकती है?"

बनिया—"भले आदमी! यदि चील बच्चे को उठाकर नहीं ले जा सकती तो चूहे भी मन भर भारी तराज़ू को नहीं खा सकते। तुझे बच्चा चाहिए तो तराज़ू निकाल कर दे दे।"

इसी तरह विवाद करते हुए दोनों राजमहल में पहुँचे। वहाँ न्यायाधिकारी के सामने महाजन ने अपनी दुःख-कथा सुनाते हुए कहा कि, "इस बनिये ने मेरा लड़का चुरा लिया है।"

धर्माधिकारी ने बनिये से कहा—"इसका लड़का इसे दे दो।"