पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१८५

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10 PAUXACARIU 117 बुकार-चोर-पग्पर-सरें। 6 11 56. 117 कृतमीषणनिःखनैः। 6 2466. VP. (a) महाघोरे। 6 1076. (b) बुक्कार करेन्ता। 6 1086. 118 ज य मायासें ण माइयई 6 11 6b. 118 VP. जलयलायासे । 6 107b. 119 अण्णई उम्मूलिय-तरुवर, 119 उत्क्षिप्य पर्वतान् केचित् मण्ण संचालिप-महिहर॥ 6 117. केचिदुन्मूल्य पादपान् । 6 247a. VP.के एत्थ सिलाहस्था अवरे गिरि-विविह-रुक्ख-हत्या य ॥ 6 108a. 120 तिहपहरु पाउ जिह णिहउ कह। 6 121b. 120 निहत्य वानरं पाप तबाथ शरणं कुतः । 6 249. 121 चिन्तेवि 612 4a. 121 व्यचिन्तयत् । 6 251a, 122 के तुम्हई। 612 5a 122 के यूयं । 6 253a, 123 महपवि-कों कह पाइयउ। 6 12 7b. 123 अपराधः खजायायां हतो योऽसौ प्लवंगमः। 6 255), 124 रिसि-पक्षणमोकारहुँ चलेंण, 124 साधुप्रसादेन संप्राप्तो देवतामिमां 6256a. सुरवरु उप्पण्णु तेण फण ॥ 6 12 8. VP. साहु-पभावेण उदहिकुमार। अहं जाआ। 6 110b. 125 जिउ वि केसु xxx तर्हि, 125 तेन xx असौ गुर्वन्तिकमुपाहतः। 6 260. शिवसइ महरिसि xxx जर्हि 6 18 2. 126 पुणु पुछिड महरिसि 'धम्मु कहें। 126 पप्रच्छतुर्मुनि धर्मम् । 6 2736 6 13 7 a. VP. साहुं पुच्छन्ति जिणधर्म । 6 1126 127 जागो सि मासि कासीविसऍ। 6 15 20. 127 अभूत xx विषये काशीनामनि । 6 318 VP. वाणारसीऍ एको जाओ। 6 1350 128 मावि कावित्य-सग्ग-गमणु, 128 कापिष्ठगमनं xx अस्य xx भस्ममुपाग- पत्तो सि णवर जोइस-भवणु ॥ तम् । ततोसौ xx ज्योतिःसुरोऽभवत् । तत्यहाँ वि चवेप्पिणु सुद्धमइ, ततः प्रच्युत्य जातस्त्वं विद्युत्केशो नभश्चरः॥ हमो सि एल्थ लाहिवह ॥ ध्याधोऽपि सुचिरं भ्रान्त्वा भवतुममहावने । पाणुष्टि हिण्डेवि भव-गहणे, लढायां प्रमदोद्याने शाखामृगगतिं गतः॥ उप्पण्णु पवनमु पमय-बणे॥ ततोऽसौ निहतः व्यर्थ त्वया बाणेन चापलात् । पह हउ समाहि-मरणेण मुड, प्राप्य पश्च-नमस्कार जातोऽयं सागरामरः॥ पुणु गम्पिणु उवहिकुमार हुड ॥6 15 5-7 6325-328 VP. जोइसवासित्तणं पत्ते। तो चुओ समाणो इहतडिकेसो तुमं समुप्पलो। वाहो वि परिभमित्ता संसारे वाणरो जाओ ॥ 6 1426-143 129 र सुकेसु पवेदि। 615 9b. 129 मुकेश-संज्ञके पुत्रे संक्रमय्य निजं पदम् । 6 3340 130 मई मोडन्ति वहन्ति हत्या । 7 2 80. 130 चके देहस्य वलन स्फुटत्सन्धिकृतखनम् । 6 367a 181 (a) पुर उजोवन्तिय दीवि जेम, पच्छह 131 ततोऽसौ चन्द्रलेखेव व्यतीयाय नभश्वरान् । अन्धार करन्ति तेम॥ 738 पर्वता इव ते प्राप्ताः श्यामतां शोकवाहिनः ॥ (b) ससि-ओह विणुण महिहरिन्द। 743b. 6 424