पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१८६

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INTRODUCTION 11 182 गणियारि पाक, णिय किहिन्यहाँ पासु 132 अभावयदिमा वाला ततोऽन्य व्योमचारिणम् । किह । सरि-सलिल रहहरें कलहंसहाँ कळ- धात्री सदासरस्यजं हंसीमुत्कलिका यथा ।। 6415 हसि बिह॥ 7 3 10 193 भान्ति सम्भाविहरन्ति मन।79 4a. 133 मश्वस्य स्तम्भमादाय धमजोसे परः कपिः । 6 4410 134 लाहिड पतु सुकेसु ताम । 7 5 6b.. 134 मुकेशो राक्षसाधिपःxxx भायातः । 6 450a. VP. सुकेसिराया समणुपत्तो । 6 18 36 135 किएँ पाराउट्टएँ चल-समुरें। 76 16. 135 तेनैकेन विना सैन्यमित्तवेतश्च तद्गतम् । 6 4540 136 में विजयसीहु हड भुय विसाल, 136 निहतश्च तव भ्राता येन पापेन वैरिणा सो णित कियन्त-दन्तन्तरालु ॥ 797 प्रापितोऽसौ महानिद्रा ॥ 6498 137 षण-पडल, णिएवि । 7 10 20. 137 दृष्ट्वा शरदि तोयदम् । 6 5030, 138 सहसारकुमारहों देवि रजु। 7 10 8a. 138 सहस्रारं सुतं राज्ये स्थापयित्वा। 6 505a. 139 किकिन्धाहियो वि। 139 गतो मे किष्किन्धो वन्दितुं जिनम् । 6 508 गउवन्दणहत्तिऍमेह सो-वि ॥7 104b. 140 जोवह व पईहिय-सोयणेहि, 140 (a) निझरैर्हसतीवायमट्टहासेन भासुरः । हसह व कमलायर-आणणे हैं। 6513b. गायव भमर-महुमरि-सरेहि, (b) अभ्युत्थानं करोतीव नमनं च नमत्तः । पहाहव हिम्मल-जल-णिज्झरेहि। 6 515b. वीसमह व ललिप-लयाहरेहि, पणवह व पृष्ठ-फल-गुरुभरेहि ॥ 7 10 1-8 141 महु महिहरो वि किकिन्धु वुत्तु । 141 पर्वतोऽपि स किष्किन्धः प्रख्यातः xx 7 11 la. पूर्व तु मधुरित्यासीत् ॥ 6522 142 पट्ट छ। 7 14 8b. 142 प्रविष्टास्ते ततोल हाम् । 6 565a. 143 छम्वीस वि सहसाँ पेक्खणयहुँ। 143 परविंशति सहस्राणि च योषिताम् । 7 25b 81 6a. 144 मट्ठायाल-सहस-परजुवइहि । 8 1 8b. 144 चत्वारिंशत्सहाष्टाभिः सहस्राणि च योशिता 7 246. 145 ते मालि सुमालि करें धरह । 8 2 9b. 145 अय मालिनमित्यूचे सुमाली । 7 419, 146 मोकल-केस णारि । 83 16. 146 वनिताःxx मुफकेश्यः । 7 476, 147 विदु गिगले मालि णाराएं। 8 9 10. 147 मालिनो भालदेशेऽप x शरे x निचखान । 7 85 148 बहिरायम्विह। 89 30. 148 रकाहणितदेहम् । 7 860. 149 वाम-पाणि वर्णों देवि भवन्तिएँ, 149 संस्तम्भ्य वेदना कोषान्मालिनाऽप्यमरोत्तमः मिण्णु पिडालें सुराहिउ सत्तिऍ॥ 8 9 4 ललाटस्य तटे शक्त्या हतः॥ 150 मिसुवि गड चोइड जोवेदि, 150 तद् वधार्थ गतं शर्क भनुमार्गेण गस्वर । ससहरु पुरड परिहिट तोहि ॥ 8 10 6. उवाच प्रणतः सोमः॥ 791 151 महुमादेसु देहि परमेसर । 8 10 7a. 151 खयं मे यच्छ शासनम् । 7 92b. 152 इन्दीवरडि पक्ष्य-चयणि । 922b. 152 नीलोत्पलेक्षण पप्रवक्ताम् । 7 150a. 786