१०० पउमचरित [क०३,९२,३-९,३,:- सुरवर-णर "वि ॥ घत्ता ।। रहु वाहेंवि अरुणु हय हर्णेवि पुणु जा जोयणु विण पावइ । ता मेरुहें भवि जिणवरु णवेवि तहिँ जे" पडीवउ आवइ ॥९ [२] । तहाँ जं वलु तं ण पुरन्दरहों ण कुवेरहों वरुणहों ससहरहों ॥१ मेरु वि टालइ वद्धामरिसु तहों अण्णु णराहिउ तिण-सरिसु ॥२ कइलास-महीहरु कहि मि गउ तहिं सम्मउ णामें लइउ वउ ॥३ णिग्गन्थु मुएवि विसुद्ध-मइ अण्णहों इन्दहों वि' णाहिँ णमइ ॥४ तं तेहउ पेक्खेवि गीढ-भई पवज लेवि गउ सूररउ ॥५ ॥ 'महु होसइ केण वि कारणेण समरङ्गणु समउ दसाणणेण॥६ अवरेके वुत्तु 'ण इमु घडइ कइवंसिउ किं अम्हहुँ भिडई ॥ ७ सिरिकण्ठहों लग्गेवि मित्तइय अण्णु वि उवयार-सएहिँ लइय ॥८ ॥ घत्ता ॥ अहवइ वाणर वि रत्तुप्पल-दल-णयणहों। ॥ ता सयल वि सुहड जा समर- -ज्झर्ड णउ णिएन्ति दहवयणहाँ ॥९ [३] तं वालि-सल्लु हियवऍ धरेवि तो रावणु अण्ण वोल्ल करेंवि ॥१ गउ एक-दिवसें सुर-सुन्दरिहें जा अवहरणेण तणूयरिहें ॥२ ता हरविणीय कुल-भूसणेहि चन्दणहि ह(व?)रिय खर-दूसणेहिँ ॥३ ० णासन्त णिएवि सहोयरेण णयरेणालङ्कारोदएण ॥४ णं उवरें छुहवि रक्खिय-सरण किय(?) तेहि मि चन्दोवर-मरणु ॥५ विणिवाइउ अत्थाणे जे थिर जो दुक्किउ सो तं वारु णिउ ॥६ कुढे लग्गउ जं रयणियर-वलु रह-तुरय-णाय-णरवर-पवलु ॥ ७ 11 pa aft, s wanting. 12 s wantiny. 2. 1 The widdle portion of the folio in P giving the rest of this Kadavakin and the next Kadavaka is repaired and rewritten in a clumsy band. Therein initially only 7 appears. 2 pst. 3 8 A गवइ. 4 P S गीढवउ. 5 1' न इउ, s ण येउ. GPS किह अह्महं. 7 5 भिडइं. 8 P उमयार'. 9.8 सुरवर वि. 10 P भड, A झडाणउ. 3. 18 °सल्ल. 2 P SA हियवह. 3 PS सो. 4 PS अण्णु, A अक्ष. 5 P marginally adds Y to वोल्ल. 6s चंदणवि.7 P महोदएण, A सहोयरिण. 8 P °रोदणेण. 9 A उयरि. 10A चंदोयर'. 11 PS °णरपवरपवलु. [२] १ सम्यक्त्व-नामा व्रतं गृहीतम्. २ (P's reading) संवरितं शरीरम् . [३]१(P's reading) महोद्यतवन्तः (?). २ पाताललङ्कया. ३ कृत. ४ विनाशं नीतः।
पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३१३
दिखावट