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पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३३०

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क. १,९१-९61-0] पडदहमो मंत्रि ॥घत्ता ॥ $ 10 विहुम-मरगर्य इन्दणील-सर्य चामियर-हार-संघाऍहिं। वहु-वण्णुजलु णावइणहयलु सुरवणु-धणे-विजु-चलायहिं ॥९ [७] का वि करन्ति केलि सहुँ रोएं पहणई कोमल-कुवलय-धाएं ॥१ का वि मुद्ध दिडिएँ सुविसाल' का वि णवल्लएँ मल्लिय-मालऍ॥२ का वि सुर्यन्धेहिँ पार्डलि-हुल्लेहि का वि सु-पूयफलेंहि वउल्लेहि ॥३ का वि जुण्ण-पणेहिँ पट्टणिऍहि का वि रयण-मणि-अवलम्वणिहि ॥४ का वि विलेवणेहिँ उबरियहिँ का वि सुरहि-दवणा-मञ्जरियहिँ ॥५ कहें वि गुज्झु जलें अद्भुम्मिल्लंउ णं मयरहर-सिहरु सोहिल्लउ ॥ ६ कहें वि कसण रोमावलि दिट्ठी काम-वेणि गं गलेंवि पइट्ठी ॥७ कहें वि थणोवरि ललइ अहोरणु णाई अणङ्गहों केरउ तोरणु ॥८ ॥ घत्ता॥ कहें वि स-रुहिरई दिट्टई णहरई थण-सिहरोवरि सु-पहुत्त । वेगॅर्ण वलग्गहों मयण-तुरङ्गहों णं पाय छुडु छुडु खुत्त ॥९॥ [८] तं जल-कील णिएवि पहाणहुँ जाय वोल णहयलें गिर्वाणहुँ ॥ १ पभणइ एकै हरिस-संपण्णः 'तिहुअणे सहसकिरण पर धण्णउँ ॥ २ जुवई-सहासु जासु स-वियार विन्भम-हाव-भाव-वावारउ ॥३ णलिणि-वणु व द्विणयर-कर-इच्छेउ कुमुय-वणु व ससहर तण्णिच्छउ() ॥४॥ काल जाइ जसु मयण-विलासें माणिणि-पत्तिजवणायासें ॥५ अच्छउ सुरज जेण जगु मत्तउ जल-कीलऍ जि" किण्ण पज्जत्तः ॥ तं णिसुणेवि अवरेकु पवोल्लिउ 'सहसकिरणु केवल सलिलोल्लिउ ॥७ 8 PS 'मरगयई. 9 Ps °सयई. 10 P 8 चामीयर. 11 P s घणु, A wanting. 7. 1 P s treft. 2 A TUTE. 3 P s'agft. 4 P $ gfarete. 5 P S ATET. 6 णवल्लेहि. 7PS पाडल'. 8 Ps पदमिछउ, A भदुम्मिलिउ. 9 P वेग्गेण. 10 P3 पपई. 8. 14 पहाणहं. 2 Aणहयलि जाय वोड. 3 P A पिग्माण, गिब्वाणहु. 4 पमणई. 58 इ. 6 P A संपण्णउं. 7 घण्णभो, A पण्णड. 8 जुबई. 9 P विभारउं. 102 इच्छर, इच्छिउ. 11 P वणिज्छ, तणणिच्छउ, बिछड. 12 PS जरुकीलाए. [५] १ कामस्य. २ उपरितनवासम्,