१०-९०-९] सोलहमो संधि [१] पारासरु पभणइ विहि मणोजु ण एकें मेन्तिऍ रज-कजु' ॥१ पिसुणेण वृत्तु 'वेणि वि ण होन्ति अवरोप्पर घडेवि कु-मन्तु देन्ति' ॥२ कउंटिलें वुश्चइ 'कवण भन्ति तिणि वि चेयारि वि चारुमन्ति॥३ मणु चवइ 'गरुअ वारहहुँ बुद्धि णर्ड एके विहिँ तिहिं कज-सिद्धि' ॥४॥ तं णिसुणेवि पभणइ अमरमन्ति 'अइसुन्दरु जइ सोलह हवन्ति' ॥ ५. 'भिगुणन्दणु वोलइ 'वुद्धिवन्तु अकिलेसें वीसहि होइ मन्तु'॥ ६ तं णिसुणेवि चवइ सहासणयणु विणु मन्ति-सहासे मन्तु कवणु ।। ७ अण्णहों अण्णारिस होइ वुद्धि अकिलेसें सिज्झइ कज-सिद्धि' ॥८ ॥ घत्ता॥ जयकारिउ सहि तो समउ दसासें 'अम्हहुँ केरी बुद्धि जइ। सुन्दर सन्धि सुराहिवइ ॥९ 15 वुह अत्थसत्थे पभणन्ति एव कहिं लब्भइ उत्तम सन्धि देव ॥१ एकु वि मालिहें सिरु खुडेवि धित्तु अण्णु वि जइ रावणु होइ मित्तु ॥२ तो तउ परमेसर कवण हाणि अहि असइ तो वि 'सिहि महुर-वाणि॥३ जइ साम-भेय-दाणेहिँ जि सिद्धि तो दण्ड पउञ्जिऍ कवर्णं विद्धि ॥४ अच्छन्ति वालि-रणु संभरेवि सुग्गीव-चन्दकर कुद्ध वे वि ॥५ णल-णील ते वि हियवऍ असुद्ध सुवन्ति णिरारिउँ अत्थ-लुद्ध ॥ ६ खर-दूसणा वि णिय-पाण-भीय कजेण जेणं चन्दणहि णीय ॥७ माहेसरपुरवइ-मरुर्णरिन्द अवमाणेवि वसिकिय जिह गइन्द ॥८ ॥ घत्ता॥ आएहिँ उवाहिँ भेइजन्ति णराहिवइ । दहवयण-णिहेलणु जाइ दूउ चित्तङ्गु जई' ॥९ 1 Ps मंतिहिं. 2 8 विणि मि. 3 P चडेबि, घिरिवि. 4 P कुमंति. 5 P कउदालें, marginally 'कउटलिं' पाठे; s कउंदाले. 6 A वितिणि. 7 Ps हुंति. 8 A कउ. 9rs पमणित, पभणइं. 7. 1 Ps सस्थे भरथ. 2 A उत्तर. 3 P8 °दाणे. 4 दंग, s दंडि. 5 PS पउंजेवि. 6PS कवणु.78 चंदकुर, A चंदनल.8 णिराहिउ. 9 केण. 10 PS अवमाणमि. 6. [६] १ बृहस्पतिः. २ शुकः. [७] १ सर्पः. १ मयूरः. ३ सहसकिरण. ४ भो इन्ध (१).
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