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पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३५८

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०५-20-06-२] सत्तरहमी संधि विसाल-कुम्भमण्डला णिवद्ध-दन्त-उजला ॥५ अथक-कण्या-थामरा णिवारियालि-मोपरा ॥६ समुद्ध-सुण्ड-मीसणा विसह-घण्टणीसणा ॥७ मणोज-गेज पन्तिको भमन्ति वेवि द्रन्तिगो॥८ ॥ पत्ता ॥ मनगलहिँ महन्तेहिं विहि मि भमन्तेहिं सुखालाहि पवर । भव-भवणेहि छूढी महि मूढी भमहस-सायरस-भरपर [१७] तिजगविहसणेग किउ सुर-करी गिरत्यो। परिओसिय जिसायरा ल्हसित वारि-सत्थो। १ रावणु णव-जुवाणु वलवन्तउ अमराहिउ गय-वेस-महन्तउ ॥२ भवि ण सकिउ करिव खबिउ रक्खें सयकारउ परियश्चिउ ॥३ गउ गएण पहु पहुणोट्ठद्ध झम्प देवि 'अंसुऍण णिवद्ध ॥४ विजउ घुड्डु रयणीयर-साहणे देवेंहिं दुन्दुहि दिणं दिवङ्गणें ॥५ ताव जयन्तु दसाणण-जाएं आणिउ वन्धेवि वाहु-सहाएं ॥६ जमु सुग्गीवें दूसम-सीलें अणलु णलेण अणिल रण णीलें ॥७ खर-दूसणेहिँ चित्त-चित्तणय रवि ससि लेवि आय अङ्गङ्गय ॥८ सुरवर-गुरु मएण णिन्भिच्चे लइउ कुवेरु समरें मारिच्चे ॥९ ॥ घत्ता॥ जो जसु उत्थरियउ सो तें धरियउ गेण्हेंवि पवर-वन्दि-सयई। गउ सुरवर-डामरु पुरु अजरामरु जिणु जिह जिणेवि महाभयइँ॥१० [१८] लक पुरन्दरे जिए जय-सिरी-णिवासो। सहसारेण पत्थिओं पत्थिवो दसासो ॥१ 'अहों जम-धणय-सक कम्पावण देहि सुपुत्त-भिक्ख महु रावण' ॥२ 4 PS °सोड. 5A दोवि. 6A नयर.7PS °भवणे . 8A छुढी. 17. 1 °विहूसणेणं, 2 A गहवेय.. 3 A गपचर. 4 A °णोहहर. 578A दुहि. 6P विष्णु, A दि. 7 PS महंगणे. 18. 1 A forent. 2 P S OPR. 3 P s great, a missing. [१६] १°शन्दौ. [१७] १ वृद्धः. १ वरत्रेण. ३ अमिः. ४ वायुः. [१८]१ प्रार्थितः. २ राजा. पउ. चरि.19 20