- पत्थर-युग के दो बुत भला कैसे सहा जा सकता है | रतिकाल मे विरत स्त्री तो है ही नही, स्त्री की लाश है। कौन पशु लाश के साथ रति कर सकता है इमलिए रति का प्राण भावातिरेक है। भावातिरेक से ही रति सक्रिय- मप्राण बनती है। सप्राण रति ही स्त्री को सम्पूर्ण प्राप्तव्य देती है और पुरुप के पौरुप को कृतकृत्य करती है। मैं नहीं जानता कि आप मेरी बात को ठीक-ठीक समझ भी रहे है या नहीं । आप पति है या पत्नी-मै यह नही जानता,पर मै इतना कह सकता हू कि दाम्पत्य जीवन मे आप रति के समुद्र मे कितनी ही बार जरूर ड्व चुके है, पर रति का लाभ भी प्रापको प्राप्त हुअा हे या नहीं, उस डुबकी मे प्रापको प्राण-स्फुरण के प्रानन्दातिरेक का मोती मिला हे या नहीं, यह मं नहीं कह सकता। गिरते ही स्त्री-पुरुपो को वह मोती मिलता है। बहुतो पो मीप मिनता है और बहुतो के हाय घोघे ही रह जाते है । वहरहा न पुरुप पोर स्त्री के पारस्परिक सम्बन्ध मे सेक्स की उपेक्षा नहीं की जा सकती । भिन्नलिंगी का परस्पर-पाकर्षण स्वाभाविक है। वदना वह पाकरण प्रज्ञात रहता है। और जब यह पाकर्षण किमी पर- स्त्री पोर परपुरूप के बीच अवैध रूप से होता है तो बड़ी कठिन समस्या या उपस्थित होती है। जिनमे मवसे बडी रमभग की एप रनिनाश की नमस्या है, जो इतने बड़े खतरे और दु माहम को ही समाप्त कर देती है। मै पापने यह बात नहीं छिपाना चाहता कि मेरा शरीर-सम्बन्ध अविवाहिता नदस्यिो मे भी रहा । परन्तु प्रापका यह जानकर पाश्चर्य हो सकता है कि पहत उपर ही से हुई। ग्राप देखते ही हैं कि में कोई गुगा पुन्प नहीं है। अपने को मै सुन्दर कहने का भी साहम नहीं कर सका। परन्तु में यह भी दृटताघर कह सकता है कि कामोदय-काम म प्रविधा- हिता पनिया न मोदय देती है, न प्रायु, न प्रेम । । देगती है वह प्यान जो नेत्रो में उन्ह दयते ही भटा उटती है पीर मिलम निन्न नगिक आकर्षण होता है । म पवल करता है कि किमी नी य प्राप्त सुन्दरी लटकी को देवरर मेरी ग्राला मे वह 'याम मा उटनी ? । पार . -
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