दिलीपकुमार राय . स्त्री जितनी ही शीलवती होती है उतनी ही वह मवेदनशील होनी है। जितनी वह सवेदनशील होती है, उतनी ही भावुक होती है। जितनी वह भावुक होती है उतनी ही प्रेमवती होती है। जिननी ही वह प्रेमाती होती है उतनी ही आग्रही स्वभाव की और मानवती भी होती ? । नमी भावुक, एकनिष्ठ और प्रेमीवती स्त्रिया मानवती हुग्रा करती है। प्रेम मन का एक अत्यन्त कोमल और सवेदनशील भाव है। मा सम्बन्ध चेतनाशक्ति के सबसे अधिक शक्तिसम्पन्न और प्रवाहमय न्द्रित है। इसलिए अत्यन्त कोमल प्रभाव जो स्त्री से पुरुप पर और पुम्पनेची पर प्राता है, वही सर्वाधिक शक्तिशाली होता है । इस नाजुन नरना लाखो-करोडो नर-नारी नही जानते । कोमल नावुक, प्रेमवती नी तनिक सी भी तो परुपता-कठोरता--को नहीं मह्न र नरती। सामावा वेशक कठोर आघात चाहता है । कामावेग ने न्त्री बरम नीना का सहार अाघात भी सह सकती है। कना चाहिए, उनमी कामना करती है-7 नन का ही, मन का नहीं । कामावेग से प्रथम प्रेमावेग सा बार ग्राता है। वहना चाहिए, कामदेव प्रमावेग पर ही सवार होकर ग्रात । ची नवे मे अतिशय नावुक, अतिगय कोमल, अतिशय नाज़त हो जाती है। नको सम्पूर्ण चेतनाए सवेदनशील बन जाती है। इननिए वह प्रमावेगन बाल-बराबर की भी कठोरता-पर पता मन नहीं करनानी। ननन्ध या पुस्प-मन का तनिक-सा नी परपनाव उने विल र दता है। रति प्रेम और काम दोनो ही नानार है । रति नम्बी सावित