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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत "खैर, तो सुनिए, पाशविक प्रवृत्ति ही प्रेम है।" "पागविक प्रवृत्ति से प्रेम का क्या सम्बन्ध है "वस समझ लीजिए, दोनो एक ही है। खास कर औरत के मामा मे।" "अरे भाई, तुम तो पहेलिया बुझाने लगे। साफ वान क्या नहीं कहते ।" - "ग्राप साफ ही सुनना चाहते है तो सुनिए । स्त्रिया कोरे को पसन्द नहीं करती। वे तो उमी प्रेम को पसन्द करती है तिनम मान- वासना का भीपण आक्रमण छिपा हो।" मेरी बात सुनकर दत्त चुप हो गया। वह मिनी गम्भीर पिता ; डूब गया। मेरा हृदय धडकने लगा। मुझे ऐमा प्रतीत हाने नगारि कोई वज्रपात मेरे ऊपर होनेवाला है। परन्तु उसने शान-पान पर न कहा, “क्या सचमुच औरते इस कदर कामुक होती है। "क्या आपने सुना नहीं, औरत मे पुस्प ते याठ गुनी नाम की - I होती है ?" "हा, सुना तो है। पर अपने पाठ बरस के वैवाहित - पिन न न र यह वात प्रत्यक्ष नहीं देगी। पर तुम शायद ठीर रहते हो चारित हारा अनुभव वाईस वरस का है। लेकिन राय, पदि नापा ने चने ने यही कारण या तो तुमने अपना इलाज कराना मे नयो लापरवाही के मेरा मह शर्म से लाल हो गया, गौर नुनने दना बन दने न वना। यद्यपि यह एक प्रारस्मिन गौर तहज नहानुभूति रा ही 7 पा, पर मुझे ऐसा प्रतीत हुग्रा वि जैने दत्त ने नेर न कर तमाचा मारा हो । में अभी कुछ नबार नोच ही रहा पानिन' राय, तुम्हारी यह यात्रा गलत नी हो नानी है। मेरा मन हो रहा पाकिब नहा ने नवन: पौन-सा रस पनडे जार मानन्देह ना पात - रन नमय दत्त गेनार ने रेलामा मिस = द