पत्थर-युग के दो वुत २१ मुझसे वाते कीजिए।" "कैसी वाते?" "मीठी-मीठी वातें-जैसी मर्द औरतो से किया करते है।" "लेकिन "फिर लेकिन ? लेकिन पाप वात कीजिए।" दिलीपकुमार हँस पडे। उन्होने कहा, "तो भाभी, इसी शर्त पर रुक मकता हू -पाप साडी वदल ले और वाल बना ले।" एक हिंस्र प्रवृत्ति ने अकस्मात् ही मेरी चेतना को अशान्त कर दिया। और मैंने तुरन्त ड्रेसिंगरूम में जाकर नई साडी पहनी, वालो का जूडा बाधा, होठो पर राग-रजन किया, नेत्रो मे काजल दिया । और अब मैं स्वय हैरान थी, कोई प्रासुरी प्रवृत्ति कहा से आकर मुझे शृगारित कर रही थी। शृगार करके ज्योही मैं दिलीपकुमार के सामने पहुची, वे देवकर भौचक रह गए। एकदम जड-अविचल, एकटक मुझे देखते रहे । और मैं भी भीतर-वाहर से पत्थर वनी खडी रही-निश्चल, निप्कप, निस्पद । दिलापकुमार के मुह से वात न फूटी। धीरे-धीरे उनकी पाखे नीचे को - झुक गई। इसी समय गाडी का हॉर्न वजा । वे ग्रा रहे थे। इस बार होश-हवास मे थे। मगर नशे मे झूम रहे थे। उन्होने एक नजर मेरी ओर देखा । दोनो हाय फैलाकर डालिग कहकर मेरी पोर वढे। राय की उपस्थिति मे उनकी इस चेप्टा से मैं शरमा गई। मैं पीछे हट गई। तभी उनकी नजर दिलीप- कुमार राय के ऊपर पडी। 'हल्लो राय, तुम भी हो। गुड, गुड, लेकिन और सव कहा हैं ?" उन्होने अपने चारो ओर नजर घुमाई। मजा हुग्रा टेवल, चमचमाती रोशनी । उन्होने कहा, "मामला क्या है ? मामला वे एक कुर्सी पर बैठ गए। मैं जड बनी खडी रही। दिलीपकुमार उनके पान साव अस्तव्यस्त वात करने लगे। ग्लानि और सीन से मेरा मन ना तो हो गया। मैने दिलीपकुमार ते नकेन से कहा, ' इन्हे ले तार नुता दो।" 1) गए। वे उनके
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