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पत्थर-युग के दो बुत
५३
 

पत्थर-युग के दो वुत ५३ - एक बात मैंने और देखी, उत्तम पाचन-शक्ति का काम-वेग पर भारी प्रभाव पड़ता है। सदैव से मेरी पाचन-शक्ति तीव्र रही है। इससे मेरे शरीर पर प्रचण्ड काम-शक्ति का उदय होता रहा। कहना चाहिए-ज्वार- भाटा आता रहा । मैं अनुभव करता था कि मेरा शरीर तप रहा है, पर कामाग्नि के इस ताप को थर्मामीटर पर नही नापा जा सकता था। मैंने विज्ञान की शिक्षा पाई है । मैं जानता हूं कि हमारे शरीर का निर्माण करने की शक्ति हमारे रक्त-सेलो मे है । जैसे छोटी-छोटी इंटो से मकान बनाए जाते हैं, उसी प्रकार सेलो से शरीर बना है। और रक्त- प्रवाह के साथ जीवन-शक्ति सारे शरीर को मिलती है । परन्तु यह प्रवाह काम-वासना पर निर्भर है। काम-वासना हमारे शरीर में एक ग्राग जलाती है, उससे तपे हुए गुलावी गालो को देखकर हम प्रसन्नता ग्रीर उत्तेजना होती है , क्योकि इससे रक्त की उत्तमता का नम्बन्ध है। जितना ही हमारा रक्त उत्तेजित होगा, उतना ही हमारा स्वास्थ्य उत्तम होगा , और रक्त की उत्तेजना का उत्तम प्रकार कामोत्तेजना ही है । मानवीय विकास का इतिहास काम-विकास ने प्रारम्न होता है। वच्चे काम-वासना के विकास से रहित होते है । यह उनका नानान्य ही है । उनके कोमल नन्हे शरीर और सुकोमल हृदय नला पाम वे प्रवड वेग को कैसे सह सकते थे। प्राणि-शास्त्र-विशारदो ने कहा है कि प्रेम का उदय बिचार ने होता ह । परन्तु प्रेम पर सयम रखने की आवश्यकता पर भी उन्होंने विचार दिया है । शरीर एक महत्त्वपूर्ण यन्त्र है, उनसे उतना ही नाम लिया जाना ठीक है जितने की शक्ति उनमे है । प्रेमोत्तेजना मे पदि शरीर की गक्ति से बाहर काम किया जाएगा तो निश्चय ही उनका परिणाम अनिष्टकार होगा । जव प्रेम के साप नामोदय होता है ता रक्त न यार नाटियो ने । तीव्र उत्तेजना का अनुभव हाता है गार ग्रानन्द की - न पति ने रेन ना कर एक मानसिर काम बन जाता है जो प्रत्यन याबादम है । वह जव युवा पुरुप मे, जो स्वत्व नी है, पण नावाने हाता मरे