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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/६५

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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो बुत " - के आगे गिरकर जान दे दू । वह मैं, जो अपनी ज़िन्दगी को प्यार करने का सबसे बडा हिमायतीह -इस वक्त ऐसा अनुभव कर रहा था कि जैसे जिन्दगी के बोझ से मैं चकनाचूर हो रहा है और अव एक सेकण्ड भी इस वोझे को मैं नही ढो सकता हू बहुत रात बीते, हारा-थका, भूखा-प्यासा जब मैं घर आया तो देखा, वेवी वराडे मे मेरी प्रतीक्षा मे खडी है । उसे सब न हुग्रा । दीडक र वह मुझसे लिपट गई और सिसकिया भर-भरकर रोने लगी। उसने टूटते कण्ठ से कहा, "डैडी, वे चली गईं, ममी चली गई।" इन बातो की सम्भावनाए मेरे मन मे नही थी, यह वात नहीं, पर इस वक्त वेवी के मुह से इन शब्दो को सुनकर मुझे ऐसा प्रतीत हुग्रा किसी बधिक ने निर्दयता से मेरी एक पसली मेरे सीने से जबर्दस्ती निकाल ली है । उस दर्द को मैं एकाएक सहन न कर सका । जिस दर्द-भरे नहने मे बेवी ने वह वात कही थी, उसने मेरे कलेजे को चाक कर दिया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं अभी बेहोश हो जाऊगा, या मेरा हाट ही फेन हो जाएगा । मैं एक बार ज़मीन मे झुक गया। देवी चीख उठी । नोकर- चाकर दौडे । सवने जाकर मुझे बिस्तर पर लिटाया। देवी न चाहा कि डाक्टर को फोन करे, पर मैंने रोक दिया। मैने कहा, “में अच्छा है, अच्छा है।" इस वक्त मैं उसी तरह कराह रहा था जैसे जिवह होते वक्त गाव कराहती है। फिर भी मैं अपनी हिम्मत को बटोर रहा था । सब नोक्रा को चले जाने को मैंने कहा और फिर वेबी को टाटन देने लगा। मने रहा, "वेवी, फिक्र न कर, तेरी ममी आ जाएगी। उन्ह गुस्सा या गया हागा। न होगा तो मैं सुवह उन्हे वुला लाऊगा।" लेकिन वेवी ने मुझसे कहा, ममी गुस्ना करके नहीं गई है । न वे अव लौटकर पाएगी। वस चती गई है, हमेशा के लिए। में कितनी कुने । मैने पापको ममी से लड़वा दिया।" वेवी मेरे सीने पर सिर पर फफककर रोने लगी। उस वक्त जिन्दगी ने पहली ही बार न नावन 1 म जाएगी कहा -