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पत्थर-युग के दो बुत
 

8 211 - पत्यर-युग के दो वुत हुआ कि मेरे पास एक बाप का भी दिल है। पहली बार मैंने देखा कि बाप का दिल कैसा होता है। पर फौरन ही मन में सोचने लगा- मा का भी तो दिल होता है । माया क्या मा का दिल यही छोड गई ? मैंने पूछा, "वेबी, क्या तेरी ममी ने जाते वक्त तुझसे कुछ कहा "वे जाने को बिलकुल तैयार होकर आई थी । जाते वक्त सिर्फ उनका पर्स उनके हाथ मे था। उन्होने पाकर मुझे चमा, अपनी गोदी मे विठा- कर शायद चुपचाप रोई । लेकिन मुझसे उन्होने आसू छिपा लिये। फिर मेरे हायो मे घर की चाभियो का गुच्छा देकर कहा, 'वेटी, तू समझदार है, सयानी हे, जब तक तू इस घर मे हे, घर को सभालना। मैंने जिस तरह घर को रखा है, उसी तरह तू भी रयना । और ममी को भूल जाना । में सिर्फ थोडे-से रुपये ही लिये जा रही है, और कुछ नहीं।' उन्होने अपने हाथ का पर्स मोलकर वे थोडे-से रुपये मुझे दिखा दिए। मने देखा-उनका चेहरा राग के समान मैला और बुधला हो रहा है । वे एक मामूली साडी पहने थी। और अपने सब जेवर, हाथ की चूडिया तक उन्होंने उतार दी यी। मैं ममी से लिपट गई । वहुत कहा - ममी, मेरे कुसूर का माफ कर दीजिए, में डंडी से अब कोई बात नहीं कहगी। लेकिन उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। एक बार मेरे सिर पर प्यार से हाय फेरकर, मुझे सीने से लगाकर वे चली गई उडी ।" इतना कहकर बेबी फिर दानो हाथो से मुह ढापकर रोने लगी। मन अपने मन मे कहा-तब ता वह मा का दिल माय ले गई है । हलकी सी ग्रागा की मलक मुझे दिखाई दी। मैंने सोचा-मेरे लिए न सही, बेबी के लिए वह लौट पाएगी। लेकिन तीन दिन बीत गए, वह नहीं पाई। ववी तीन दिन म राती रही है। उसने कुछ भी नहीं पाया है । मेरा ज्यान या वह वर्मा के पर गई होगी, पर पीछे पता लगा कि वह अपनी एक सहेली के घर पर है। मन एक पुर्वा लिवा, केवल दो शब्द-'माया, वेत्री पर इस कदर बेरमा न ग । जब से तुम गर्द यो, वह न वाती है न पीती है, रो रही है।'