पत्थर-युग के दो बुत । , गाम पुर्जा पढकर माया आई। सीधी वेवी के कमरे मे गई। वेवी को गोद मे लिया, बहलाया, उसे खिलाया-पिलाया। मैने सब कुछ जाना-सुना । तवीयत को तसल्ली दी-आखिर वह आ गई । मुझे ऐसा प्रतीत हुग्रा जैसे मैं फिर से जी उठा । वह दिन-भर बेबी के पास रही। मुझे आशा थी कि रात को वह मेरे पास आएगी और तब किस तरह सुलह की जाएगी-मैं मन ही मन इन बातो पर विचार करने लगा। पर वह शाम को मुझसे विना ही मिले चली गई। वेवी ने कहा-वह सुबह फिर पाएगी। सुबह ग्राई और दिन-भर वेवी के साथ रही। वेवी वहुत खुश थी। मैं भी खुश था, को मैंने आफिस से लौटकर उसके साथ चाय पी। इसके बाद उसने मुझसे वात की। बात छेडते ही मैंने सुलह के मूड मे कहा "मुझे बहुत अफसोस है माया, उस दिन मैं गधा बन गया, मैंने तुमने बहुत तख्त-कलामी की। मुझे तुम माफ कर दो।" उसने कहा, "यानी तुम उन बातो को वापस लेने को तैयार हो?" "ज़रूर, ज़रूर । मैं वापस लेता हू, मुझे अफसोस है।" "अफसोस हो सकता है तुम्हे, क्योकि तुम एक कोमल, भावुक हृदय के आदमी हो, पर तुम उन बातो को वापस कैसे ले सकते हो "क्यो नहीं ले सकता, विलकुल वाहियात थी वे वाते।" "वाहियात तो थी मगर सच भी तो थी ।" मैने घवराकर माया के मुह की ओर देखा। वह गाल और गनीर थी। उसने कहा "इज्जत तो तुम्हारी भी है। और मैं जानती ह्, नुम उनके लिए बड़ी से बडी कुर्वानी कर सकते हो।" "लेकिन तुम्हारा मतलब क्या है "यही कि तुम्हारी ही नानि में भी अपनी इरजन का बहन पान रहती हू। तुम मुझे और मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती है। हमने अपनी प्री जवानी मिल-जुलकर एकसार एक होकर वाटी है। अब न न तुन्हे नोर न 211 ननुन
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