SS पत्यर-युग के दो बुत मुझे धोखा दे सकते हो। यह ठीक भी न होगा।" "तो तुम हम "हाँ, मैं यह कह रही हू कि अब हम पति-पत्नी की भांति एकमाय नहीं रह सकते। हमे अलग होना होगा।" "लेकिन माया, हम पति-पत्नी की भांति रह सकते हैं। तुम जानती हो, मैं तुम्हे कितना प्यार करता हू , "प्यार की बात तो मैं भी कुछ कह सकती हू, पर उसका अब यह मोका नहीं है। फिर यदि प्यार का कुछ उपयोग ही आज करना है तो इस तरह करे कि हमारी मित्रता अटूट बनी रहे। एक-दूसरे को याद करके हम दिल मे एक टीस का अनुभव करते रहे।" लेकिन पति-पत्नी की भांति क्यो नही रह सकते" "उस दिन तुमने गुस्सा किया तो में तुम्हारे लिए कितनी दुसी हुई काश कि हमारे-तुम्हारे बीच कोई न प्राता । पर अब तो जैसे में तुम्हे जानती है, तुम मुझे जानते हो। हम दोनो ही अब एक-दूसरे के प्रति वफादार नहीं रहे। मुझे मतोप मिर्फ इतना ही है कि बेवफाई की पहल तुमने की । बहुत दिन में म जानती थी कि तुम्हारे सम्बन्ध अनेक लडकियो से रहते रहे है। मैने मन को बहुत समभाया कि ग्रामिर तुम मर्द हो, म पोरत ह । मर्द ऐसा प्राय करते ही है। पर अन्त में मेरा प्रात्म-मम्मान और निष्ठा जाग उठी, और मैंने तुममे माग की कि तुम्हे मेरे प्रति वफादार होकर रहना होगा। पर तुमने उमे हॅमी मे टाल दिया। तुम्हारा स्याल था कि पत्नी यदि पनि मे वफादारी की माग करे तो यह बहुत हलकी-मी, पक्कि मब प्रकार में हाम्याम्पद-मी वान है । पर मरोमा नहीं मानती। मैं तो चाहती है कि मि पत्नी पति के प्रति वफादार है, वैसे ही पति नी पत्नी के प्रति वफादार हो।" लेकिन माया, मैन तम्ह प्यार करन म कामी नहीं की।" तुम शायद उस युग की बाते सोचत हो, तब एक पति की अनक स्त्रिया होती थी। वे सर उसके प्रति वातदार ही नहीं होती थी, पनियता भी होती थी। उनके लिए पतिस्त-चम की बडी-बढी कहानिया बनाई गई। -
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