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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/७४

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पत्थर-युग के दो बुत
 

क्यो भला ? ७२ पत्थर-युग के दो बुत करते हैं, मेरी इज्जत करते है। कोई मुझे चाची कहता है, कोई वुमा,कोई भाभी, कोई ताई । और आज से नही वाईस बरस से ये रिश्तेदार मेरे ऐसे प्रिय हो गए हैं कि उनके सुख-दुख मे मुझे बहुत बार हँसना-रोना पडा हे । उनमे मे बहुतो को देखते ही मैं आनन्द से गद्गद हो जाती है। बहुतो को वेवी के समान प्रिय समझती हूँ। वे सब अव हट गए। वे सब अब पराये हो गए। अब उन्हे देखकर मैं गर्व से मुस्करा नहीं सकती, उनपर गपनी ममता जता नही सकती। कहना चाहिए कि उन्हे देखकर अब शर्म से मुझे मुह छिपा लेना पडेगा। सब नातेदारिया अब गत्म हो गई किस कमर पर उन्होंने मेरा क्या विगाडा था? तलाक तो मैंने राय को ही दिया। इसी एक बात में ये सब सम्बन्ध-बन्धन भी टूट गये। मेरी युग की दुनिया उगड़ गई। परिवार की एक सदस्या थी मै, सबके बीच जगमगा रही थी, अब उखडकर अकेली रह गई। प्रोफ, कितनी निराशाजनक, कितनी भयानक बात है। लेक्निरिया भी क्या जा सकता है । वर्मा बहुत भने प्रादमी है। मुझे उन्ह देखते ही अपने जीवन के वे दिन याद माने लगत है जब म नई व्याह- कर गय के घर मे पाई थी। वर्मा जब मेरी मी ही ललो-चप्पो मे पाप- भगत करते ह बात-बात पर प्यार जताते हैं जैसे कभी राय जताते थे, तो अब मन मे वैसी गुदगुदी नहीं होती। वह तो उटनी हुई जवानी थी, प्यार का पहला दौर था। नया शरीर या, नई उमग थी, नया मगाया। पिन की दुपहरी चढ़ रही थी। अब तो वह बात नही है। दुपहरी प्राइन रही है। प्रेम का तूफान तो क्य का शान्त हो चुका। प्रातो या ना चोनोगती मझे हास्यास्पद मी लगती है। प्रबना म सोच रही थी कि पगात विश्वान, मान्मीयता, गम्भीरता और शाल दुटुना---यह माया TE दिन में न मिल जाएगा? कितना नप, कितना व्याग, कि प्रेम श्रीर विदवान मुसेव करना पड़ा या लगातार पाईग पीन, Ent दिन्य वस्तु म के प्राप्त हुई थी। राय ने-राय के व्यकितनामा बातो का सीधा नवन्धन था। उनमा मम्मच तो उस नन्यापारी