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पत्थर-युग के दो बुत
 

पत्थर-युग के दो बुत "आप मेरी ममी हैं न जाने कहा से एक माझ मन से बाहर निकल आकर ज़वान पर बैठ गई, ममी की याद से और मेरे मुह से यह वाक्य निकल गया । उन्होने सुनकर मुझे चूम लिया। आहिस्ता से कहा, "काश, मैं तुम्हारी ममी होती | कितनी प्यारी विटिया हो तुम | कैसे तुम्हे छोडकर चली गईं तुम्हारी ममी ।" मेरी आसो मे पाम् छलछला अाए ।उन्होने आसू पोछकर कहा "अव तो तुमने मुझे ममी कह ही दिया ।" "आप मेरी ममी है, इतना प्यार तो ममी ही कर सकती हैं।" मैंने कहा और उनके कण्ठ मे अपनी भुजाए डाल दी। इसके बाद वहुत-सी बाते हुई। बातें अधिक पापा के सम्बन्ध में थी। वे सोद-सोदकर पूछने लगी, “कभी तुम्हारे पापा भी याद करते हैं तुम्हारी ममी को, वेवी ?" मैं क्या जवाब देती भला | मैं चुप हो गई। पापा की बात सुनने को वे जैसे बहुत उत्सुक हो रही थी। घूम-फिरकर फिर उन्ही को वाते करती थी। उन्होने पूछा, "क्या तुम्हारी ममी तुम्हारे पापा को बहुत प्यार करती - . गी?" "ग्रोह, बहुत बहुत "ौर तुमको?" "मुझे भी।" "फिर ऐसी मुन्दर विटिया, ऐमे घर और पति को छोटकर वे चनी क्यो गई ?" मेरा मन कुण्ठा मे भर गया यह बात सुनकर। भला मेरे पास दा वातो का क्या जवाव था । पर वीरे-धीरे उन्होने मुझमे पापा की बहुत बातें जान ली। पापा ममी को याद करके रोते है। रात को देर तक सोने नहीं है। जीवन की हर बात से उदासीन हो गए है। वे मत्र सुनती रही, चुपचाप सुनती रही। फिर उन्होंने एकाप पूछा, "मैत्री, तम्हारे पापा को भला और भी कोई प्यार करता है