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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/९३

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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत दनमाली मैं उनका मुह ताकने लगी। मेरी समझ मे वात नही पाई। उन्होने कहा, “यदि कोई उन्हे उतना ही प्यार करे जितना तुम्हारी ममी करती थी, तो तुम उसे क्या कहोगी “ोह | मै भी उन्हे प्यार करूगी। पर ममी-जैना प्यार पापा का कौन करेगा ?" "यदि मैं करू?" मैंने अकचकाकर उनके मुख की अोर देया। वह ताल हो रहा या और पाखे सावन-भादो के वादलो की भाति भरी हई थी। मैं और कुछ न समझी । 'ग्रोह' कहकर उनकी गोद म गिर गई। और तव उन्होने खोलकर सब वाते मुझे धीर धीरे बता दी। मनी मैंने दुनिया नहीं देखी थी, पर मैं उनकी बाते सव समन ई । यी 17 गई कि पापा उन्हे प्यार करते है और वे पापा का प्यार परती है। काम मे कुछ वाधानो की अोर उन्होने सकेत किया जिन्द में नहीं सम- सकी। पर प्रेम-प्यार की वाते सब समझ गई। नुनपर कुछ नय र, याशका, उद्वेग मेरे मन में उत्पन्न हुअा। अन्त म उन्हान रहा, पी तुमने मुझे ममी कहा है । भाग्य ने तुम्ह ममी की गाद त गिरा दिया है। मैं जानती ह्, तुम्हारी ममी के जान का तुम्हे भी सदमा है और तन्दार पाप को भी है। और अव तुम बच्ची नही हो -सब बाते समन्नीदा। जैसे भाग्य ने तुम्हारी ममी से तुम्हारे पापा का विडोह करा दिया की भाति भाग्य ने मुझे उनसे मिला दिया। बहुत दिन न न नाव दीको कि मैं तुमसे यह बात कह द्। तुम्ह तो मैन उनी दिन एक बार दमा का जव तुम मेरे घर गई पी। किन्तु ती एक वार दवन के बाद नन तर कभी नहीं भुलाया। और जब तुम्हारे पापा त मर्ग पनिपता की तान मानस मे यह एक तीव्र भावना उत्पन्न हुई पि न तन्हारी नमी बन्ना रही ह । कैसे ग्राश्चय की बात है कि तुमन नुन् ननी नान निवा' मुझे एक बात बतायो-वही बात प्टन नो न तुन्दार पान । "पाप पहिए।"