98 पदुमावति । २ । सिंघल-दीप-बरनन-खंड । के सेवतो (= सोने सौ पौलो सेवती, वा सोनि-जरद और सेवती), रूप-मञ्जरी, मालती, जाही, जूहो, सुदर्शन, मउलसिरौ (= मौलसिरौ), बेइलि (= बेला ), और करना, ये सब फूलों के नाम हैं ॥ फिर उस बगीचे के चारो ओर फुलवारी लगी है, जो (अपने ) वास (सुगन्ध ) से वृक्षों को बेध कर चन्दन हुई है, अर्थात् उम के सुगन्ध के लगने से सब वृक्ष सुगन्धित हो गये हैं, इस लिये फुलवारौ चन्दन हो गई है, (चन्दन का गुण धारण करती है। क्योंकि चन्दन में यह गुण है, कि उस को सुगन्ध लगने से, और वृक्ष भी वैमा-हौ सुगन्धित हो जाते हैं )। घन-बेलौ बहुत फूल फूली हुई है, और उस फुलवारी में, केवडा, चम्पा, कुन्द, चमेली, सुरंग, गुलाल, कदम्ब, और कूजा लगे हैं, सुगन्ध-वकावली भी है, जो कि राजा गन्धर्व-सेन के पूजा-योग्य है, अर्थात् केवल राजा गन्धर्व-सेन के यहाँ उस फूल पहुंचते हैं, दूसरे को दुर्लभ हैं ॥ फुलवारी में नागेसर, सदवरग, नेवारी और हर-सिंगार (भी) हैं ॥ सोनजर्द, सेवतो, वा पौलौ सेवती, रूप-मञ्जरी, और मालती फूली हुई हैं ॥ जाहो और जूही ढेर के ढेर (बकुचन्ह ), अर्थात् बहुत, लगाई हैं । (इस फूल का धर्म है, कि एक लगाने से कुछ दिनों में हजारों हो जाते हैं ) । सुदर्शन भी लगा हुआ शोभित है ॥ मौलसिरौ, बेला, और करना फूले हैं, और अनेक वर्ण के वे तिस के शिर चढते हैं, जिस के माथे में मणि (कान्ति) और भाग्य हो । (वहाँ ) सर्वदा अच्छी सुगन्ध भई है, अर्थात् हो रही है, जानों (सर्वदा) वसन्त और फाग है॥ बेला को साधारण चार जाति है, मुंगरा, मदन-वान, मोतिया, और बेदलि। मुंगरा के में बहुत पत्तियाँ होती हैं । मदन-वान का फूल लम्बा और कुछ नोखौला होता है । मोतिया का फूल मोती के ऐसा होता है। और बेइलि के फूल में पत्तियाँ अलग अलग होती हैं। मुंगरे को घन-बेइलि भी कहते हैं। रूप-मञ्जरी चार प्रकार की होती है, दो गुलाबी, एक लाल, और एक श्वेत । श्वेत बहुत मिलती है, और तीन बहुत कम । करना एक प्रकार का निम्बू है, इस के फूल में सुगन्ध भी होता है। करने का अंतर कान में छोडने से, कान को पौडा अच्छी हो जाती है। (६०दोहे को देखो) ॥ ३५ ॥ फूल फूले हैं । 3
- फारमौ सद (0) =
सौ। बगे (34)= पनौ। जिस में सौ पत्तियाँ हाँ, अर्थात् हजारा।