पदुमावति । २ । सिंघल-दीप-बरनन-खंड । [३६ दोहा। - = सावधान । पद चरपट चार गठि-छोरा मिले रहहिँ तेहि नाँच । जो तेहि हाट सजग रहदू गठि ता करि पद बाँच ॥३६॥ फुलवारी= फूल-वाली = फूल बैंचने-वालो। अपूरव = अपूर्व । सेधिा = सुगन्ध-द्रव्य = अंतर फुलेल । गाँधौ = गन्धौ = तर फुलेल बैंचने-वाला । बहुल = बहुत । खिरउरी खिरौरी - मसालेदार खैर को गोली, जिस से पान में विशेष खाद उत्पन्न होता है। हमारे प्रदेशों में बहुत प्रसिद्ध है, जैसे व्यचनों में मूंग, तिल, और कोहडे, इत्यादि से 'मुंगौरी', 'तिलौरी', 'कोहडौरौ', इत्यादि शब्द बने हैं, उसी प्रकार खैर से 'खिरौरौ' हुआ है। कोड = कूर्दन = कूदना । छरहटा = नकल करने-वाले = क्षार (भस्म ) लपेटने- वाले। पेखन = प्रेक्षण = दृश्य = मेला। पखंडौ = पाखण्डौ = धूर्त= कठ-पुतली नचाने- वाला। नाटक-कला = नट लोगों को बाजी-गरौ। चेटक-कला = चटक मटक से टोना लगा देने-वाली कला, जिस से मनुष्य विवश हो जाय। बिदित्रा -विद्या। बउराई = बौरहा ॥ चरपट = चपाट मूर्ख, जो जबरदस्ती अपने जोर से दूसरे को चौज को छौन ले । गठि-छोरा = गठरी को छीन लेने-वाले, = चाई। सजग सज्जित = अपि= निश्चय से ॥ (उस हाट में ) फूल बैंचने-वाली मालिन फूलों को ले ले कर बैठी हैं । और बना कर (संवारि) अपूर्व (जो कि पहले न देखा गया हो) पान को धरे हुई हैं ॥ गन्धी सब सुगन्ध द्रव्य को ले कर, और बहुत कपूर के साथ खिरौरी बाँध कर बैठा है । ( यहाँ 'बहुल ' के स्थान में 'मेलि' यह पाठ अच्छा है। तब 'गन्धी सब सुगन्ध द्रव्य को ले कर बैठा है और कपूर डाल कर (मेलि ) खिरौरी को बाँधा है, अर्थात् बनाया है ) ॥ कहौं पण्डित पुराण को पढते हैं, और धर्म-पथ का वर्णन करते हैं ॥ कहीं पर कोई कुछ कथा कहता है। कहौं पर अच्छी तरह नाँच और कूद हो रहा है॥ कहौं पर नकल करने-वाला मेला लगा रहा है। कहीं पर कठ-पुतली नचाने वाला काठ-हौ को ( काठ को पुतलियों को) नचा रहा है ॥ कहौं पर (वाद्य का) नाद हो रहा है, जिम का शब्द भला (जान पडता) है। कहीं पर नटों का खेल, और चालाकों का हथ-फेर सम्बन्धी खेल हो रहा है। कहीं पर ठग ने किसी के ऊपर (ठगने के लिये ) अपनी विद्या को लगाया है। कहीं पर लोग (अपने यन्त्र मन्त्र से) मनुष्य को बौरहा कर लेते हैं। - -
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