पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१५६

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पदुमावति । २ । सिंघलदीप-बरनन-खंड । [at = ( बढ कर ) रूप में बखानी जाती हैं। वे रानियाँ अत्यन्त सुन्दरी (स-रूप) और अति कोमल (सु-कुवारी) हैं, (केवल ) पान और फूल के आधार से रहती हैं, (अन्न नहीं खातौं)॥ तिन सब के ऊपर रानी चम्पावती है, जो कि महा सु-रूपवती और पाट ( सिंहासन ) में प्रधान है, अर्थात् प्रथम-विवाहिता है, जिसे अधिकार है, कि राजा के संग सिंहासन पर बैठे ॥ वह श्टङ्गार को किये अपने आसन पर बैठी रहती है, और सब रानियाँ उम को प्रणाम (जोहार) करती हैं ॥ वह (मोई) नित्य नये रङ्ग सुरङ्ग में रहती है, अर्थात् नित्य नित्य नये नाच रंग में श्रानन्द करती है। उस की प्रथम अवस्था है, अर्थात् वह प्रौढा है, और उस की बराबरी में (सदृश ) कोई नहीं है ॥ राजा गन्धर्व-सेन सब द्वौपों में से जिन जिन रानियों को चुन चुन कर ले आये हैं, तिन में (चम्पावती) द्वादश वर्ण दीपक है, अर्थात् प्रज्वलित दीप-शिखा मी है वह कुर्वरि (चम्पावतौ ) बत्तीसो लक्षण से युत है, और इस प्रकार से सब रानियों में अनुपम है, और सिंहल-द्वीप में जितने लोग हैं, सब उस के रूप का बखान करते हैं ॥४६॥ वृहत्संहिता के स्त्री-लक्षण अध्याय में स्त्रियों के ये वत्तिम लक्षण लिखे हैं।- पैर का नख तामे के ऐसा १ । पाद-पृष्ठ कूर्म के पृष्ठ सदृश २ । गुल्फ (घुट्ठी) सुन्दर गोल देखने लायक ३ । पैर कौ अङ्गुलियाँ आपस में सटौ हुई ४। पाद-तल (तरवा) कमल के ऐसा चमकौला, उस में अङ्कुश, मत्स्य, असि इत्यादि के चिन्ह हाँ ५। जङ्घा (पैर के ऊपर के भाग) दोनों बराबर, और गोल जिन में नम ऊपर न उभड बाई हाँ ६ । जानु (जचे के ऊपर के भाग ) दोनों बराबर और सुढार । ऊरू (जानु के ऊपर के भाग जो नितम्ब से मिले रहते हैं) आपस में सटे हाथी के सूंड ऐसे ८ । भग बडी पीपल के पत्र ऐसौ । पैंडू (भग के ऊपर का भाग) कूर्म-पृष्ठ के ऐसा ऊंचा १० । भग के बीच का भाग छिपा हुआ १९ । नितम्ब (चूतर) फैले, मांस से भरे स्थल १२ । नाभी गम्भौर और दहिनौ भोर घूमौ हुई १३ । नाभौ के ऊपर का भाग विना रोम का और तीन वलि से संयुत १४ । स्तन, समान, गोल, घन और कठोर १५। पेट, मृदु विना रोम का १६ । यौवा ( गला ) शङ्ख के ऐसौ १७ । श्रोठ जपा (उडडल ) फूल के ऐसे लाल और पुष्ट १८ । दाँत कुन्द के कलौ से १८ । बोलना, स्पष्ट और मौठा २० । सुन्दर नासिका जिस के दोनों पूरे बराबर हो २१। आँख नौले कमल सौ २२ । भाँहे द्वितीया के चन्द्र मौ टेढौ जो आपस में मिलौ न हाँ २३। विना रोम का ललाट, अर्धचन्द्र के -