पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२३५

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६७-६८] सुधाकर-चन्द्रिका। २५५ वैश्य - तेलङ्ग ५ ॥ १ ॥ क्षत्रिय । सूर्यवंशी, चन्द्र-वंशी, इत्यादि प्राचीन समय के। वैम, बघेला, चन्देला, चौहान, पमार, उज्जैन, गहरवार, विमेन, इत्यादि आजकल के ॥ २ ॥ अगर-वाला इत्यादि ॥ ३ ॥ मोनार ॥ ४ ॥ कलवार ॥ ५ ॥ बनिया ॥ ६ ॥ कायस्थ ॥ ७ ॥ पटवा (पट-हारा) ॥ ८ ॥ बारौ॥६॥ ठठेर॥१०॥ अहौर ॥ ११ ॥ गूजर ॥ १२ ॥ तमोलौ, बरई ॥१३॥ रङ्गरेज ॥ १४ ॥ नाऊ ॥ १५॥ लोहार ॥ १६ ॥ भाट ॥ १७॥ तेलो॥ १८॥ माली ॥ १८ ॥ गन्धौ ॥ २०॥ छोपी ॥ २१ ॥ नट ॥ २२ ॥ डोम ॥ २३ ॥ ढोल = कोल, भिल्ल ॥ २४ ॥ हेला = हलालखोर = सहनाई बजानेवाला ॥ २५ ॥ धोबी ॥ २६ ॥ चमार ॥ २७॥ कोहार ॥ २८ ॥ कुनुबौ ॥ २८ ॥ कोइरौ ॥ ३० ॥ कहार, झूजा, गोंड, काँदू ॥ ३१॥ मल्लाह, केवट, धौवर, धानुक, बहेलिया ॥ ३२॥ नोनिया ॥ ३३ ॥ भर, पासी, दुसाध ॥ ३४ ॥ खटिक ॥ ३५ ॥ गडेरिया ॥ ३६ ॥ दूस प्रान्त में ये ३६ जाति प्रधान हैं। देश विशेष में कुछ इन्ही में हेर फेर है)॥ और मदा (सर्वदा ) दिन श्रार रात वसन्त ऋतु (ऋतु-राज ) रहता है ॥ फुलवारी में जिस जिम वर्ण के फूल होते हैं, तिमौ तिसौ वर्ण को सु-गन्ध से भरौं वहाँ नारियाँ हैं। तहाँ का प्रधान (बड = वर ) राजा गन्धर्व-सेन है, ब्रह्मा (विधि) ने ( उसे ) अप्सराओं (अप्सरा सदृश युवतियाँ) के बीच इन्द्र (ऐसा ) सजा (शोभित किया) है ।। तिसौ (राजा) की कन्या वह (मो) पद्मावती है, और वह ( कन्या) सब दौपाँ ( सब दौये-सौ और युवतियाँ ) में उज्ज्वलित है ॥ (विवाह के लिये) चारो ( चहूँ) ओर ( खण्ड) के जो वर (वहाँ) झुकते हैं (ोनाहौँ)। राजा ( गन्धर्व-सेन ) गर्व से (उन से ) बोलता नहीं, अर्थात् अपने समान न देख उन्हें तुच्छ समझता है । जैसे सूर्य उदय होता हो (वैसी-ही पद्मावती को कान्ति ) देखी है, अर्थात् देख पडती है । (जैसे ) तिम सूर्य के तेज (धूप) से चान्द छिप जाता है, ऐसे-ही पद्मावती के रूप के आगे सब छिप जाते हैं, अर्थात् उस को कान्ति के आगे सब को कान्ति फोकी पड़ जाती है ॥६॥ 9 - चउपाई। सुनि रबि नाउ रतन भा राता। पंडित फेरि इहइ कहु बाता ॥ तुइँ सु-रंग मूरति वह कही। चित मँह लागि चितर होइ रही। जनु होइ सुरुज आइ मन बसौ । सब घट पूरि हिअइ परगसौ ॥ अब हउँ सुरुज चाँद वह छाया । जल बिनु मौन रकत बिनु काया ।