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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२५७

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१०२] सुधाकर-चन्द्रिका। 1 - सौस के ऊपर जो माँग है उस का वर्णन करता हूँ, (पद्मावती के कुत्रारी होने से) जिस पर अभी मैंदुर नहीं चढा है। विना सेंदुर को (वह माँग ) ऐसौ ( चमकतो) है जानाँ दौया, (वा वह माँग ऐमौ जान पडती है मानों किसी ने) रजनी में अर्थात् अँधेरी रात में उँजेली राह (पन्या) को है अर्थात् बनाई है। (दोनों कालो पटिया अँधेरी रात है उस में चमकती माँग को धारौ उजेली राह है) ॥ (अथवा उस माँग को ऐसौ शोभा है जानों) कसौटी पर कसौ सुवर्ण-रेखा हो। ( दोनों पटिया मिल कर जानौँ कसौटी है उस पर सोने सौ चमकती माँग को धारी कसे हुए सोने को रेखा सो झलकती है)। (वा उस माँग को ऐसौ शोभा है) जानाँ मेघ (घन ) में बिजली प्रकाश हुई हो। (कालो पटिया मेघ और माँग को धारी विद्युल्लता है) ॥ (वा माँग नहीं है नौले) आकाश में एक विशिष्ट सूर्य-किरण है। (पटिया नौला अाकाश और माँग की चमकती धारी एक विशेष सूर्य-किरण है)। (अथवा माँग नहीं है जानौँ ) यमुना के मध्य में सरस्वती नदी देखी है, अर्थात् देख पड़ती है। (पटिया यमुना और कुछ लालिमा लिये चमकतो माँग को धारी सरस्वती नदी है) ॥ (अथवा शिर के चर्म के ललाई को श्रामा से कुछ लालौ लिये चमकती माँग को धारौ ऐसी शोभित है) जानाँ रुधिर से भरौ तलवार को धार है। (अथवा माँग को धारी जानौं) आरा है जिसे ले कर (किसी ने ) बेनी के ऊपर धर दिया हो। [काले केश-कूपाँ स्थान स्थान पर छिन्न हो जाने से वह माँग को धारी पारा (करपत्र = करवत) सौ जान पडती है ] ॥ तिस माँग पर जो मोती पूर कर धरौ है अर्थात् मोती की लड रक्खी है, (उस की ऐसी शोभा है जानौँ) यमुना के मध्य में गङ्गा को सोतो आ गई हो। (पटिया यमुना और माँग पर मोती-लड गङ्गा को सोत है)। इस प्रकार यमुना और गङ्गा का मङ्गम बेनी (शिर को चोटी) पर होने से पद्मावती को बेनी साक्षात् बेनी (= प्रयाग ) हुई, जहाँ शरीर चिरवाने के लिये मांग-रूपी श्रारा ( करवत) भी मौजूद है। प्रसिद्ध कथा है कि दूसरे जन्म में मनो-वाञ्छित फल पाने के लिये बहुत से लोग अपनी शरीर को पारा से चिरवा डालते थे इस के लिये वहाँ गङ्गा-यमुना के सङ्गम पर एक श्रारा भी रक्खा रहा था। शाहजहाँ बादशाह ने इस कु-रौति के दूर करने के लिये उस पारा को तोडवा डाला ॥ दूस पर कवि को उत्प्रेक्षा है, कि बहुत से तपखौ (तपा) जो चूर्ण हो कर, अर्थात् अपनी शरीर को छिन्न भिन्न कर, आरे को लिये, अर्थात् पकडे,