पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२६२

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१७२ पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [१०४ धन =धन्या = बोझ = बोझा = भार । अकरद् = अप्सरायें। गोपौता = गोपायिता = सु-रक्षिता = देवौ ॥ पद्मावतौ। दोसर = दूसरा। उग्गवद् = उगता है = उगमन होता है। लाज = लज्जा से ॥ भौंह जानों (निशाना मारने के लिये) काला (श्याम) धनुष ताना गया है, ( दूस लिये) जिस की ओर (पद्मावती) देखती है (उसे ) विष का वाण (कटाक्ष-रूप) मारती है। देखने-हौ से जो लोग मोहन-रूप से मोहित हो मूर्छित हो जाते हैं, वहाँ पर कवि को उत्प्रेक्षा है, कि पद्मावती ने भाँह-रूपी काले धनुष को तान कर नेत्र-कटाक्ष-रूप विष-वाण से मार दिया है, दूसौ से वह मूर्छित हो गया है | उस भौंह के ऊपर वहौ धनुष (काला जिम का वर्णन ऊपर की चौपाई में कर आये हैं) चढा हुआ है, (सो नहीं जानता, कि) किस ने (इस ) काल के ऐसे हत्यारे (धनुष) को बनाया ( गढा) है ॥ ( पद्मावती का भाँह-रूप जो धनुष है) वहौ धनुष कृष्ण के पास था, राम-चन्द्र ने भी उसी धनुष को अपने हाथ (कर) में ग्रहण किया था, अर्थात् लिया था। अर्थात् पद्मावती की भौंह राम और कृष्ण का शार्ङ्ग-धनु है ॥ (दूम लिये ) उसो भौंह-रूपी धनुष से (राम ने ) रावण का संहार किया, (और कृष्ण ने ) उसी धनुष से कम असुर को मारा ॥ उसी धनुष से (अर्जुन ने ) मत्स्य को बेधा था, उसी धनुष से (परशु-राम ने ) सहस्त्र-बाहु को मारा था ॥ राम और कृष्ण भगवान् दशावतार में एक एक अवतार जगत्प्रसिद्ध हैं। राम और कृष्ण के विरोधी रावण और कंस भी रामायण और भागवत से जगत में बहुत-ही प्रसिद्ध हैं। भारत में कथा है, कि द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद ने कराहे में खौलते हुए घी के ऊपर एक पारे को मछलौ टॅगवा कर पण ठाना, कि जो वौर घी में इस मछली को केवल परछाहौँ देख कर बाण से मछली को मार दे उसी से द्रौपदी का विवाह किया जायगा। युधिष्ठिर के भाई अर्जुन ने पणानुसार मत्स्य का बेध कर द्रौपदी को विवाहा। पुराणों में कथा है, कि राजा सहस्र-बाहु की कन्या रेणुका से जमदग्नि- मुनि का विवाह हुआ जिस से परशु-राम का जन्म हुआ, जो कि दशावतार में एक अवतार हैं । बडे होने पर परशु-राम किसी दूसरे वन में तपस्या के लिये गये और दसौ अवसर में अपनी कन्या देखने के लिये दल बल समेत सहस्र-बाहु पहुँचे । जमदग्नि को अरण्यवासी एक माधारण गरीब मनुष्य समझ अपमान करने की बुद्धि से सहस्र-बाहु ने अपने दामाद जमदग्नि से कहा, कि मेरे दल में जितने प्राणो हैं सब का यथोचित