पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३७२

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पदुमावति । १२ । जोगी-खंड । [१३७ दोहा। जा कह सगुन होहिं अस अउ गवनइ जेहि आस । असट-उ महासिद्धि तेहि जस कबि कहा बित्रास ॥ १३७ ॥ श्रागद = अग्रे= आगे। सगुन = शकुन = कार्यारम्भ के समय और पदार्थों के दशन वा चेष्टा से कार्य की सिद्धि वा असिद्धि जान लेना । सगुनिश्रद् = शाकुनी = शकुन- विद्या (शाकुन ) के जानने-वाला = मगुनिया। ताका = ताकद (तय॑ते ) का भूत-काल तर्क किया, वा देखा। दहिउ = दधि, वा खार्थ क प्रत्यय से दधिकम्, प्राकृत में दहित्रो = दही। माँछ = मत्स्य = मछली = मच्छ। रूपद् =रौप्य = रूप्य = चाँदी। टाका =टाङ्क- पात्र, जो टाँको से गढ कर बनाया गया हो। भरे भरे हुए = भरित। कलम = घट। तरुनौ = तरुणौ = सौभाग्यवती युवती। लेह = लेइ ( लाति) का लोट लकार में मध्यम-पुरुष का वहु-वचन। ग्वालिनि = गो-पालिनी = अहिरिन। गोहराई = (घर्घरायते) = पुकारती है = गोहराती है। मालिनि = मालौ को स्त्री = मालिनी । मउर = मयूर मयूर के श्राकृति को पत्ते की टोपी, जो विवाह के समय दुलहे के शिर पर मङ्गल समझ कर, बाँधौ जाती है। गाँथदू = ग्रयाति = गाँथती है। खंजन = खञ्जन = खिडरिच एक प्रसिद्ध पक्षी, जो शरदृत में देख पड़ता है, और स्थान विशेष में जिस के दर्शन से बहुत शुभाशुभ फल कहा जाता है। नाग = सर्प, वा नाग = हस्तौ। माथ = मस्तक = माथ। दहिनदू = दक्षिणे = दहिने भाग में । मिरिग = मृग = हरिण = एक हरिण । प्रतौहार = द्वारपाल = डेवढी-दार। बोला = बोल (वलाति) का भूत- बामे = वाम भाग में = बाई ओर। बिरिख = वृष = =बैल । सर्वरित्रा श्यामलक = काला । गोदर = गौदड = टगाल = मित्रार। अकासी = आकाशीय = आकाश की। धाबद्दनि = धोबिन = धावनी, यहाँ आकाश में उडने-वाली लाल चौल्ह, जिसे क्षेम-करी भी कहते हैं। लोवा = लोमाशिका = लोमडौ। दरम = दर्शन । कुररी कुरला = टिटिहरी= टिट्टिभ। कूचा = क्रौञ्च = कराकुल = ताल का पक्षी जो पति बाँध कर अकाश में उड़ते हैं। भुराति = भुक्ति = भोग। जदूम = जैसा

रुचा=रोचते ॥ गवनदू = (गम्यते )। श्राम = श्राशा = उम्मेद =दूच्छा। अमट-3

अष्टापि = पाठ-इ। कवि = कवि। बिश्राम = व्यास = प्रसिद्ध भारत के रचयिता तथा अष्टादश पुराण के कर्ता ॥ काल । बाई = यथा। रूचा