पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४१७

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१४६] सुधाकर-चन्द्रिका। ३११

धवलाचल

जाहौँ =जाहिँ = जादू (याति) का बहु-वचन। सरग = स्वर्ग। लागा = लग्न हुआ है लगा है। घालि = गलि = गल कर = चौण हो कर, वा घालि = डाल कर। गनदू = (गणयति) = गिनता है। बदरागा = वैराग्येण = वैराग से । ततखन = तत्क्षणे = तिमी क्षण में। चाल्ह = चालः = चल्हवा = एक प्रकार का सफेद मत्स्य । देखरावा = देखने में आया। धवलागिरि धवल-गिरि सफेद पहाड। परबत = पर्वत । उठी उठ (उत्तिष्ठते ) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । हिलोर = हिल-लोल = हिलने से चञ्चल । नराजी = नाराज हुई - चिढी = चिढ गई। लहरि= लहरी तरङ्ग । अकास = आकाश । लागि = लग कर = लग्न हो कर। भुइँ = भूमि। बाजी बज (वजति = व्रजति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन। मैंति = मैंती = से। कुर = कुमार =राज-कुमार । अस एतादृश = ऐसे । मच्छ = मत्स्य । अहहौं = अहहिँ = अहदू (अस्ति) का बहु-वचन । चाहहि = चाहदू (चहति, चदति । वा इच्छति) का बहु-वचन । गवना = गमनम्। = जाना। सँजूत = संयुत = सावधान। बहुरि = भूयः पुनः = फिर । अवना = आगमनम् = श्रावना = आना ॥ पाउँ = पाद = पैर। राखद = राखे = (रक्षेत्) = रकबे ॥ जैसे रथ में गज का ठट्ट रेंग कर चलता है, (उसी प्रकार मब) जहाज चले, (जिन से) समुद्र पट गये, अर्थात् समुद्र में जहाँ देखो तहाँ जहाज-हो जहाज देख पडते हैं, समुद्र का जल देख-ही नहीं पडता ॥ जहाज मन से भी ऊपर दौडते हैं, अर्थात् जहाजों की गति मनो-गति से भी अधिक है। एक पल में हजार कोस जाते हैं ॥ समुद्र (ऐसा) अपार है, अर्थात् ऐसा अपार जल-राशि है, जानौँ अाकाश (स्वर्ग) में लगा है, अर्थात् भूमि से आकाश तक जल-हौ जल देख पड़ता है। (ऐसे भयङ्कर स्थान में राजा) गल कर (घालि), अर्थात् पद्मावती के विरह में चौण हो कर, वा अपने को डाल कर, वैराग्य से स्वर्ग को नहीं गिनता है, अर्थात् पद्मावती-विरह-जन्य-वैराग्य के कारण मृत्यु (सरग = वर्ग) को नहीं गिनता है। तिसौ क्षण में एक चाल्ह देखने में आया। (उस को शरीर ऐसौ देख पडी) जानौँ (चाल्ह नहीं किन्तु ) धवलाचल पर्वत आ गया हो ॥ (जहाजों के देखने से ) जो चाल्ह चिढ गया (तो पुच्छ और पक्ष के हिलाने से समुद्र में बडी) हिलोर उठी, (जिम के कारण) लहर आकाश में लग कर भूमि में श्राने लगौ ॥ (इस भयङ्कर-लोखा को देख कर) सब राज-कुर राजा से कहते हैं, (कि अहो महाराज,) ऐसे ऐसे