३५४ पदुमावति । १६ । सिंघल-दीप-भाउ-खंड । [१६३ ५०) अशर्फी, - तेरी पूर्व पुण्य सब नष्ट हो जायगी। इस पर राजा ब्राह्मण को बडे विनय के साथ काशी में ले आया और दासी-कर्म पर अपनी पत्नी को वैच और अपने को काशी जी में केदारघाट* श्मशान के अधिकारी डोमडे के हाथ दास- कर्म पर बैंच ५०० अशर्फी, यौँ हजार अशर्फी ले ब्राह्मण को सम्मान पुरःसर दे कर, विदा किया। राजा उस डोमडे के श्मशान पर मुर्ती के कर को उगाहता था। यही उस की नोकरी थी। अपनी नोकरी में भी राजा सत्य से ऐसा बंधा था, कि राजा का एकमात्र पुत्र रोहितास, जो कि बालवयः-कारण से माता-ही के साथ रहता था, सर्प के काटने से मर गया और शैव्या अपनी श्राधी धोती का कफन कर, उस को श्मशान में ले आई, तो राजा ने विना कर लिये फूंकने न दिया। शैव्या ने, यह विचार कर, कि चिर काल से अलग रहने के कारण और रूपान्तर हो जाने से कदाचित् ये मुझे पहचानते न हाँ, कहा, कि 'प्राण-नाथ मैं वही आप को श्राज्ञानु- वर्तिनी अभागिनी शैव्या है, और यह मृतक श्राप का वही प्राणाधार एकलौता पुत्र रोहितास है, जिस के लिये रोज रोज खोज खोज कर नये चाँदी सोने के खिलोने लिये जाते थे। आप गोद में लिये मारे मोद के अङ्ग न समाते थे।' इस पर राजा ने यही कहा, कि 'प्रिये मैं किसी को भूला नहीं है। सब को पहचानता हूँ। परन्तु मेरौ नजर से सब से ऊपर सत्य-ही नजर पडता है। खामौ से वचन दे चुका हूँ, कि आप की आज्ञा से विना कर लिये श्राग न दूंगा, और न मुर्दे को जलाने दूंगा।' इस पर अन्त में लाचार हो कर शैव्या ने नङ्गी हो कर, अपनी बचौ श्राधी धोती को उतार कर, कर देने के लिये कर फैलाने को मन मैं इच्छा को। दम्पतियों का ऐसा अचल सत्य-व्यवहार देख देवाँ ने पुष्प की दृष्टि की, और विमान को ले आये, उस पर दम्पतियों को स्वर्ग ले चलने के लिये बैठाना चाहा। राजा ने कहा, कि जितने दिनों के लिये मैं नोकरी स्वीकार कर चुका हूँ, उन में अभी कुछ दिन बाकी हैं। सो सत्य-भङ्ग कर, मैं खर्ग को नहीं जाया चाहता। इस बात पर देव लोग उस डोम को भी विमान पर बैठा लिये, और कहने लगे, कि वहौँ स्वर्ग में बाको दिनों को दूस डोम को नौकरी में पूरा करियेगा। दूस राजा को कुछ कथा महाभारत, ३ सभा पर्व, १२ अध्याय में ऐसी है। इन की उदारता पर ब्राह्मण का रूप धर विष्णु स्वयं परीक्षार्थ आये हैं। और हरिश्चन्द्र से कहा, कि 'मैं आप से कुछ माँगा
- बहुतों के मत से यह स्थान काशी में महमा हडहा है जहां अब तक हरिश्चन्द्रेश्वर महादेव हैं।
1