पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४६९

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सुधाकर-चन्द्रिका । ३६३ नाऊँ॥ चउपाई। राजइ कहा दरस जउ पावउँ। परबत काह गगन कहँ धावउँ ॥ जेहि परबत पर दरसन लहना। सिर सउँ चढउँ पाउँ का कहना ॥ मो-हूँ भाउ ऊँच सउँ ठाऊँ। ऊँचइ लेउँ पिरीतम पुरुखहि चाहिअ ऊँच हिआऊ। दिन दिन ऊँचइ राखइ पाज ॥ सदा ऊँच पइ सेइन बारू। ऊँचइ सउँ कौजिअ बेवहारू ॥ ऊँचइ चढदू ऊँच बँड सूझा। ऊँचद पास ऊँच मति बूझा ॥ ऊँचइ संग सँगति निति कौजिन। ऊँचइ लाइ जौउ पुनि दौजिन ॥ दोहा। दिन दिन ऊँच होइ सो जेहि ऊँचइ पर चाउ । ऊँच चढत जउ खसि परइ ऊँच न छाँडिअ काउ ॥ १६६ ॥ कहा- - a = कहदू (कथयति) का भूत-काल में एक-वचन । दरस = दर्शन । यदि = जौँ। पावउँ = पावद ( प्राप्नोति) का संभावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन = पाऊँ। परबत = पर्वत । काह: = क्व हि क्या। गगन = अाकाश । कहँ = को ऊपर। धावउँ = धावद् (धावति) का संभावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन = धाऊँ = दौडूं पर = उपरि। दरसन = दर्शन । लहना लम्भन = लाभ = प्राप्ति । मिर-शिर । सउँ= साँ = से । चढउँ = चढदू (उच्छर्दति, प्राकृत छड्डद्) का संभावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन = चढूँ। पाउँ = पाद = पैर । का = किम् = क्या । कहना = कथनम् । मो-इ= मुझे भी। भाउ = भादू (भाति) भाता है= सोहता है = अच्छा लगता है। ऊँच = उच्च = ऊँचा। ठाऊँ = स्थान। ऊँचद् = उच्चैः = बड़े खर से = बडे जोर से। लेउँ = ले (लाति) का उत्तम-पुरुष में एक-वचन। पिरौतम = प्रियतम सब से प्रिय (प्यारा)। नाऊँ = नाम । पुरुखहि = पुरुष को। चाहि चाहिए। ऊँच= ऊंचा पक्का बडा। हिश्राऊ = हियाव = हृदयम्, प्राकृत हिअउं= साहस हिम्मत। ऊंचदू = ऊँचे पर = उच्च पदवी पर। राखदू =रकले = रखद् (रक्षति) का विध्यर्थ में प्रथम-पुरुष का एक-वचन। पाद =पैर। सदा = सर्वदा = हमेशा = सब दिन। ऊँच = उच्च (पुरुष) = बडा श्रादमी। पद = अपि = निश्चय कर। सेदूत्र = सेदये = सेवदू (सेवते) का - पाऊ

पाउ= पाव