४१२ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१८८ 1 = तारा-मण्डल तारा-गण = ताराओं का झुंड । पहिरि= परिधाय = पहर कर = पहन कर। भल=अच्छा = वर। चोला = चोलना = निचोल = चोलो। पहिरदू = पहरती है (परिधत्ते)। समि = शशि = चन्द्र । नखत = नक्षत्र । अमोला = अमूल्य । कुमोद कुमुदिनौ = कोई। सहरू =सहस्र । दस = दश । संगा = सङ्ग = साथ । सबदू = सभी। सुगंध =सुगन्ध। चढाए= चढाइ (उच्चालयति) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का बहु-वचन । अंगा अङ्ग। रायम्ह = राय का बहु-वचन (राय राजा हो से बना है परन्तु अब राय को राजा से छोटा समझते हैं)। बरन वर्ण = भाँति = तरह। पहिरहिँ = पहिरदू का बह वचन। सारी=माडौ। सरूप = खरूप। पदु मिनौ पद्मिनौ। जाती = जाति। पान = पर्ण । फूल = फुल्ल = पुष्य । सैंदुर = सिन्दूर । रातो- रक्त = लाल । करहिं = कर (करोति) का बहु-वचन । कुरेल = कुलेल = खेल क्रीडा। सु-रंग = सुरङ्ग = अच्छे रङ्ग से । रंगोली = रंगौ हुई । चोत्रा = च्युत = चुत्राने से जो सुगन्ध-द्रव्य हो। चंदन = चन्दन । गोली= श्राई भौजी गलित ॥ चहुँ = चारो = चत्वारि । दिसि = दिशि । रही = रहद् (रहते) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का एक-वचन । सु-बासना = सुगन्ध । फुलवारी= पुष्यवाटिका । भूलौं = भूल गई =[भुलदू (भल परिभाषणे भलते ) से] । गा= गया = अगात् ॥ (चारो ओर) आज्ञा फिर गई, वसन्त-ऋतु के बाजे बजने लगे और सब लडकियाँ श्टङ्गार को सजने लगौं । कमल-कली सौ पद्मावती रानी जानौँ मालती हो कर विकशित हुई (कमल-कलो खाल होती है, हँसने कौ उपमा श्वेत से दी जाती है। प्रसन्नता से कमल-कलौ सौ पद्मावती हस देने से श्वेत हो गई, सो जानाँ मालती हो गई। मालती का फूल श्वेत होता है)। पद्मावती ताराओं के ऐसौ अच्छी चोली पहन कर, ( चोली के कपडे में चारो ओर तारे के ऐसे बूटे निकाले हुए हैं जिन की शोभा ऐसौ है जानों पद्मावती तारा-गों ही को पहने हुई है), और अमूल्य (गहनों को) पहनती है, जैसे चन्द्र नक्षत्रों को पहने । (चन्द्र पद्मावती और नक्षत्र श्राभूषण हैं) कोई (ऐसी) दश हजार सखी संग में हैं जो सब कि अङ्गों में सुगन्ध चढाए (लगाए) हुई हैं। सब राजा और रायों को लडकियाँ हैं; सब भाँति भाँति की साडियाँ पहने हुई हैं। सब सुन्दर हैं और जाति में पद्मिनौ हैं ; पान, फूल और मैंदुर से सब लाल ( हो रही) हैं । (पद्मिनी के लिये पृ० ४७ देखो) (सब) अच्छे रंग से रंगौ हुई कुलेल करती हैं और चोथा चन्दन से सब भौजी हुई हैं । - - ..
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