पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५२०

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४१४ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१८ एक . पाँउ = पैर = प्रग = पाद । हंस-गति = हंस के ऐसौ चाल । (हंस श्वेत जल-पक्षी है जो दूध-पानी को अलग अलग कर देता है)। देई = देदू (ददाति ) देती है। चंदेलिनि = चंदेले की स्त्री, (चंदेली में जो क्षत्रिय बस गए उन्हें चंदेला कहते हैं, चंदेलौ के लिये पृ० २७० देखो)। ठमकहिँ = ठमकदू ( स्तम्भयति ) का बहु-वचन, रुक रुक के चलती हैं। पगु = प्रग = पैर। ढारा = धारा = धरती हैं रखती हैं (ध धारणे से )। चलिँ = चलौं = चल (चलति) का प्रथम पुरुष में भूतकाल बहु-वचन । चउहानि = चौहान की स्त्री (चौहान एक प्रकार के क्षत्रिय हैं। दिल्ली का अन्तिम राजा पृथ्वीराज चौहान हो था)। होवू = होता है (भवति)। झनकार = झणत्कार = गहनों का झन झन शब्द । सोनारि = सानारिन = सोनार को स्त्री। सोनार सुवर्ण-कार । माहाग = सौभाग्य । साहाती = मोहतौ = शोभित। कलवारि = कलवारिन कलवार को स्त्री, कलवार == शराब बनाने और बैंचनेवाले। पेम = प्रेम । मधु = मदिरा शराब। माती=मत्त =मश्त । बानिनि = बनिश्रादून = बनिये की स्त्री, बनिया वणिक् । सैंदुर = सिन्दूर । माँगा माँग (माँग के लिये पृ० १६६ देखो)। कथिनि = कायस्थ की स्त्री= ललादून। समाहि = समाती नहीं हैं (समाति)= समादू का बहु-वचन । आँगा अङ्ग। पटनि = पटवे को स्त्री, पटवा = गहना गुहने-वाला पट्टवाहक = रेशम रखने-वाला। सुरंग = सुरङ्ग = अच्छे रङ्ग का। तन = तनु = पारीर । चोला = चोल = निचोल = चोली वा चोलिया। बरनि = बरई की स्त्री, बरई पणे = पान-रखनेवाला एक प्रकार का तमोलो। खात = खातौ (खाटु भक्षणे से ) । तमोला ताम्बूल पवित्र । फूल = फुल्ल = पुष्प। डार= डार डलिया = डाली। लेदू = लेदू = ले कर (नौत्वा, वा ला धातु से क्वा) । हाथ = हस्त । बौसुनाथ = विश्वनाथ = महादेव । साथ = सार्थ = सङ्ग । 'पद्मावती (महादेव पूजने) चलो' (ऐसी) पुकार को बोली हुई ; छत्तीसो कुल की अच्छी अच्छी सखियाँ साथ हुई। रेशमी और ऊनी कपडे पहन कर पार्वती के ऐसी ब्राह्मणौ (पुरोहितानी) संग हुई, (जो कि नेग लेने के लिये) हजारौं स्थान पर, अर्थात् स्थान स्थान पर, (अपने ) अङ्ग को मोडती है, अर्थात् नाक भौं सिकोडती है कि विना नेग लिये आगे न बढने दूंगी। अगरवालिन हाथी के ऐसा गमन करती है, अर्थात् बहुत धीरे धीरे चलती है; वैश्या वा बैसठकुरादून, हंस को गति ऐसी (भूमि में) = पान ॥ पउन पवन हवा, वा पउन = पावन =डाला -