१८६ - १६.] सुधाकर-चन्द्रिका। ४१५ - पैर को देती है अर्थात् रखती है। चंदेलिन (राह में) ठमक जाती हैं इधर उधर नखरा तिल्ला कर, पैर के गहनों को सँभार तब फिर) पैर को रखती हैं। चौहानिन (जब) चलती हैं (तब गहनों का अच्छा) झन झन शब्द होता है, अर्थात् चौहानिन गहनों से लदी हैं। सौभाग्य से मोहती सोनारिन और प्रेम-मदिरा से माती कल- वारिन चलौँ । बनिनादन और कैथिनि माँग में अच्छी तरह से सेंदुर दे कर चली (खुशौ से) अङ्ग में नहीं समाती हैं। पटदूनि देह में अच्छे रंग को चोलिया पहन कर और बरनि मुह में पान खाते चलौं । सब हवा ऐसौ वा पवित्र हाथ में फूलों की डलिया ले ले कर साथ साथ महादेव की पूजा (करने को) पद्मावती के साथ चलौँ ॥ १८८ ॥ चउपाई। ठठोरनि चलिँ बहु ठाठर कौन्हे । चलौं अहौरिनि काजर दौन्हे ॥ गुजरि चलिँ गोरस कइ माती। तंबोलिनि चलिँ रंग बहु रातौ ॥ चलौ लोहारिनि पइन. नयना। भाँटिनि चलौं मधुर मुख बयना ॥ गंधिनि चलौ सुगंध लगाए। छोपिनि छौपइँ चौर रंगाए ॥ रंगरेजिनि तन रातो सारौ। चलौं चोख सउँ नाउनि बारी॥ मालिनि चलौ फूल लेइ गाँथे। तेलिनि चलौ फुलाण्ल माँथे ॥ कइ सिँगार बहु बेसवा चलौं। जहँ लगि मूंदी बिकसौं कलौं । दोहा। नटिनि डोमिनि ढोलिनी सहनाइनि भेरिकारि। निरतत तंत बिनोद सउँ बिहँसत खेलत नारि ॥ १० ॥ ठठेरिनि = ठठेर की स्त्री, ठठेर = वर्तन बनाने और बैंचने-वाले। ठाठर = ठाट = तयारौ। अहौरिनि = अहौर की स्त्री, अहौर = अाभौर = गाय पालने-वाले, इन्हें ग्वाल (गोपाल ) भी कहते हैं। काजर = कन्जल । गूजरि = गुर्जरी = गूजर को स्त्री, गूजर गुर्जर = एक प्रकार के अहौर । गोरस = गोदुग्ध = दूध। माती तंबोलिनि = तमोलिन = तमोलिनि = तमोली को स्त्री, तमोली = ताम्बूली = ताम्बूल (पान ) बैंचने-वाले। रंग = रङ्ग । राती = रक्त = अनुरक्त = रंगी हुई। लोहारिनि =मत्त =मश्त ।
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