पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५४२

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४३६ पदुमावति । २० । बसंत-खंड। [२०० =जागदू गा=गया जस = जैसा = यादृश = यथा । सुना = सुनदू (टणोति) का भूत-काल में एक-वचन । बखानू = बखान = वर्णन । सहमहुँ = सहस्र = हजारों। करा = कला=किरण । देखमि = देखा = देखद का भूत-काल में प्रथम-पुरुष का एक-वचन । तस = तैसा = तादृश = तथा । भानू =भानु = सूर्य । मेलसि = मेला == मेल (मेलयति) का भूत-काल में प्रथम- पुरुष का एक-वचन । मकु = में कहा = क्या जाने। खन = क्षण । जागा = जागे (जागर्ति) का वियर्थ में प्रथम-पुरुष का एक-वचन। अधिक उ = और = अधिक = अधिकतर । मोत= स्रोतम् = धारा । सौर फार = हलाय । तन = तनु = देह । लागा = लगा = लगद (लगति) का भूत-काल में प्रथम-पुरुष का एक-वचन। तब = तदानीम् तदा। श्राखर = अक्षर। हिप हृदय। लिखे = लिखा = लिखद् (लिखति) का भूत-काल। भौख = भिक्षा। ले- लेना। तु = त्वम्। सिखे = मिखा = मिखद् (शिक्ष्यते ) का भूत-काल में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । बार = द्वार=दरवाजा । श्रा+ = आई = श्राव (आयाति) का भूत-काल में उत्तम-पुरुष का स्त्रीलिङ्ग में एक-वचन । (अगात् ) । V= त्वम् । सोई = सो = खपित। कइसद् = कैसे = कथम् । भुगति = भुक्ति = भोग । परापति= प्राप्ति = पराप्ति । होई = होवे (भवेत् ) । अब = अधुना। जउ = जौँ = यदि। सूर = हे सूर्य। अहउ = हो। समि = शशि । राता = रक्त-भारत = श्राशत। श्राण्ड = आना (श्रा उपसर्ग पूर्वक या प्रापणे से ) । चढि = चढ कर (उच्चाय)। गगन = आकाश । पुनि = पुनः = फिर । साता= सात = सप्त । लिखि कई = लिख कर = प्रालिख्य। बात = वार्ता। सउँ साँ = से । कही= कहदू (कथयति ) का भूत-काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । दहद = यही = दूसौ। ठाउँ ठाव = स्थान । हउँ= अहम् = मैं । बारति = व्रत। श्रही थी। परगट = प्रगट = प्रकट = जाहिर। हाउँ= होऊ (भवेयम्)। तउ= तदा तर्हि = तो। अस = ऐसा एतादृश। भंगू = भङ्ग = नाश । जगन् = समार। दिशा दोप। कर = का। पतंगू = पतङ्ग = फतिंगा ॥ जा = यस्य जिस । हउँ = अहम् = मैं । चखु = चक्षुः = आँख । हेरउँ = हेरती हूँ (हेडामि ) = हेर (हेडति) का उत्तम-पुरुष में एक वचन । साई = वही= स एव । दे = देता है (दत्ते)। प्रहि = दूसौ। दुख = दुःख । कत = कुत्र हि = कहीं। निसरउ = निसरद (निःसरति) का उत्तम-पुरुष में एक-वचन । को कौन। इतिश्रा = हत्या । अमि = ऐसौ= एतादृशी। लेदु = लेवे ॥ पद्मावती ने जैसा ( उस योगी का) वर्णन सुना था तैसा ही सहस्र-किरण सूर्य के जगत = -