पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४८२ पदुमावति । २३ । राजा-गठ-का-खंड। [२२७ वे मारहि तो काह भिखारी। लाज होइ जउँ मानिस हारी॥ ना भल मुअइ न मारइ मोखू। दुहूँ बात तुम्ह लागिहि दोखू ॥ रहइ देह जउँ गढ तर मेलौ। जोगी कित पाहिँ बिनु खेलौ ॥ दोहा। रहइ देहु जो गढ तर जनि चालहु यह बात । तिन्हहिँ जो पाहन भख करहिँ अस कहि के मुख दाँत ॥ २२७ ॥ बमिठहि = बसौठ ने दूत ने । जादू = (संयाय) जा कर। कही= कहद (कथयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन। असि = एतादृशौ - ऐसौ। बाता = वार्ता = बात । सुनत = सुनते (श्टण्वन्)। कोई = क्रोध । भा= हुश्रा (बभूव) । राता = रक्त = लाल । ठाउँहिँ ठाउँ = स्थान स्थान में। कुअर = ( राज) कुमार। माखे = श्रामर्ष में हो गए। कई = किन लोगों ने। अब लगि = अब तक। जोगी। योगौ। जिउ = जीव । राखे = रकवे (रक्षित किए)। अब-ह = इदानौं हि =अब भी। बेगि = वेगेन = शौघ्र । करहु = करो (कुरुथ )। संजोऊ = संयोग = युक्ति । तस = तथा = मारो (मारयथ)। हतित्रा = हत्या = पाप । किन = किं न = क्यों न । होऊ = होवे (भवेत्)। मंतिरिन्ह = मन्त्री का बहु-वचन । कहा = (अकथयत्) । रह = रहो (तिष्ठथ)। बूझे = बूझने पर = बोध होने पर। पति = पत्ति = लज्जा = मर्यादा । होइ = होती है (भवति)। जोगिहि मउँ योगिओं से । जूझे = युद्ध करने से ( युद्धेन ) । व = उन्हें । मारहि =मार (मारयेम )। तो तर्हि । काह = किम् = क्या। भिखारी = भिक्षुक । लाज = लजा। हो= होय (भवेत् ) । जउँ= यदि। मानि = मन्येत मानिए। हारी= हार। ना= नहौं । भल = वर। मुश्रद = मरने (मरणे)। मार= मारने में (मारणे)। मोखू = मोक्ष। दुई = दोनों में ( इयोर्हि)। बात = वार्ता । लागिहि लगेगा (लगिष्यति)। दोखू = दोष । रहदू = रहने । देहु =दो। गढ = गाढ = दुर्ग = किला । तर = तल = नीचे । मेलौ = मिले = एकट्टै हुए। कित = किम् = क्या । श्रावहि -अच्छे हैं । बिनु = विना । खेली खेल ॥ जनि चलाश्री (चालयथ)। पाहन = पाषाण = पत्थर । भख = भक्षण । करहिँ = करते हैं (कुर्वन्ति ) । एतादृश = ऐसा । कहि = किस । मुख = मुंह । दाँत = दन्त ॥ तैसा। मारह -

मत। चालड