पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७१

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१६ -१७] सुधाकर-चन्द्रिका। २३ मेदिनी (पृथ्वी पर के लोग ) (उस के) दर्शन के लिये लुभा गई, खडी हो कर ( उस को) स्तुति की विनय करती है, अर्थात् बडे विनय से उस की स्तुति करती है ॥१६॥ चउपाई। पुनि दातार दई बड कीन्हा। अस जग दान न काह दीन्हा ॥ बलि बिकरम दानी बड अहे। हातिम करन तित्रागौ कहे॥ सेर साहि सरि पूज न कोज। समुद सुमेरु घटहिँ निति दोऊ ॥ दान डाँक बाजइ दरबारा। कौरति गई समुदही पारा ॥ कंचन परसि सूर जग भण्ज। दारिद भागि दिसंतर गाज ॥ जउ कोइ जाइ एक बेरि माँगा। जनमहु भण्उ न भूखा नाँगा ॥ दस असमेध जग्ग जेइ कीन्हा। दान पुन्न सरि सोउ न दीन्हा । दोहा। अइस दानि जग उपजा सेर साहि सुलतान । ना अस भण्उ न होइही ना कोई देह अस दान ॥१७॥ बिकरम = विक्रम, अवन्ती का प्रसिद्ध दानौ राजा, जिस का संवत् चलता है। हातिम = मुसल्मानों में प्रसिद्ध दानी । करन = कर्ण, भारत का प्रसिद्ध दानौ। तिश्रागौ = त्यागौ। डाँक = डङ्का । दिसंतर = देशान्तर । असमेध = अश्वमेध । जग्ग = यज्ञ । पुन पुण्य ॥ फिर ईश्वर ने (उस को) बडा भारी दाता किया। ऐसा दान जग में किसी ने नहीं दिया ॥ बलि ( पाताल का राजा जिस से भगवान् वामन-स्वरूप हो कर साढे तीन पैर भूमि माँगी थी) और विक्रम बडे दानी थे (= अहे )। हातिम और कर्ण को भौ लोग त्यागौ अर्थात् बडे दानी कहे हैं । परन्तु शेर शाह को बराबरौ में कोई नहीं पहुँचा। (जिस के दान के आगे ) समुद्र और सुमेरु दोनों नित्य घटते हैं, अर्थात् रत्नों के दान से समुद्र, और सुवर्ण के दान से सुमेरु, नित्य घट रहे हैं ॥ दर्बार मैं दान का डङ्का बजता है, और समुद्र के पार कीर्त्ति ( उस को) चली गई ॥ उस सूर को परसि ( स्पर्श कर) संसार कञ्चन (सेना) हो गया, इस लिये दरिद्र भाग कर देशान्तर में चला गया, अर्थात् इस के राज्य से निकल कर दूसरे राज्य में चला गया ॥ यदि कोई जा कर (उस से) एक वेर भी माँगा, तो फिर वह जन्म भर भूखा और नंगा न हुआ ।