५८२ पदुमावति । २५ । सूरी-खंड । [२७३ - २७४ जयपत्र = श्रोछ = तुच्छ = छोटा। जानि कद् = ज्ञात्वा = जान कर । काहुही = कस्यापि = किमो को। जनि = न = नहौँ । कोद = कोऽपि = कोई। करे = कुर्यात् = करे। पार₹ = पक्षे= = पक्षे = पक्ष में। दहउ= देव = भगवान । हस् = है = अस्ति । जौत-पतर विजय का परवाना । देद् = दत्ते = देता है ॥ रावण ने गर्व कर राम से विरोध किया, उमौ गर्व के कारण (राम-रावण से) सङ्काम हुआ। उस रावण के ऐसा कौन बलवान था जिसे कि दश शिर और बोस भुज-दण्ड थे। जिस की रसोई में सूर्य तपता था, अर्थात् श्राग का काम सूर्य से लिया जाता था, आग धोती धोती थी। (मप्तशती दुर्गास्तोत्र के ४ अध्याय के ५२ श्लोक में शुंभ-निरंभ की प्रशंसा में लिखा है कि 'बहिश्चापि ददौ तुभ्यमग्निशौचे च वाससौ'।) शुक्र सौंटेदार, चन्द्रमा मशालचौ, और वायु दरवाजे पर झाडू देता था। (जिस रावण ने ) मौत को पकड कर (चारपाई को) पाटौ में बाँध रक्खा उस रावण का बराबरी करने-वाला दूसरा कोई भी नहीं था। जो (रावण ) वज्र के ऐसा था, किसौ के टालने से नहीं टलता था, वह भी (गर्व हौ के करने से ) मरा, दो तपसिौँ (राम-लक्ष्मण ) ने ( उसे) मार डाला। (जिस रावण को) दश करोड नाती और बेटे थे (उस को दुर्गति ऐसौ हुई कि मरने पर उस के नाम पर) एक भी रोने-वाला न ठहरा अर्थात् नाती बेटे में कोई भी न रहा जो उस के नाम पर दो चार बूंद आँसू टपकाता ॥ (भाट कहता है कि हे राजा गन्धर्व-सेन, ऐसा जान कर) किसी को छोटा समझ कर (उचित है कि) कोई अभिमान न करे। भगवान छोटे का पक्ष करता है, जो कि विजय-पत्र देता है, अर्थात् विजय-पत्र देने वाला है ॥ २ ७३ ॥ था, चउपाई। - अउरु जो भाट उहाँ हुत आगे। बिनद उठा राजा रिस लागे ॥ भाट आहि ईसुर कइ कला। राजा सब राखहिँ अरगला ॥ भाट मौंचु जो आपनि दौसा। ता सउँ कउनु करइ रिस रौसा ॥ रजाप्रसु गंधरब-सेनौ। काह मौंचु कइ चढा निसेनौ ॥ काहे अनबानी अस धरई। करइ बिटंड भटंत न करई॥ भाउ
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